बाबा स्वामी ललितानंद महाराज
प्रिय भक्तों,
आज प्रवचन माला का पांचवा दिन है.आपका हार्दिक स्वागत है। भक्तों की उपस्थिति दिनों-दिन बढ़ते रही है. आगे के प्रवचनों में पंडाल का विस्तार किया गया है. सेवा के लिए आश्रम में नए भक्त भी आ रहे हैं ताकि आपको परेशानी मत हो. आप शांति से बैठ कर सद्वचनों का श्रवण करें.आपकी विहंगम उपस्थिति से हम प्रफ़ुल्लित हैं.
उपस्थित सज्जनों और सन्नारियों और प्यारे बच्चा लोगों को आशीर्वाद, कल के शब्द के चिंतन को हम आगे बढ़ाते हैं.
बार बार यह तन नहीं नर नारायण देह
दादू बहुर न पाईये जनम अमोलक येह
ईश्वर ने हमें यह तन दिया है संसार में भला करने के लिए, सभी प्राणियों की सेवा और उनसे प्रेम भाव बना कर रखने के लिए. इस देह में स्वयं परमेश्वर बसते हैं. इस लिए हमारे से जितना भी हो सके भली ही करनी चाहिए. यह तन अमूल्य है. बड़ी मुस्किल से कई जन्मों का पुण्य संचित होने के बाद ही ईश कृपा से प्राप्त होता है.
इसलिए कहा गया है.
बड़े भाग मानुस तन पावा
सुर दुर्लभ सब ग्रन्थहि गावा
हमें अपने जीवन के समस्त सांसारिक कार्य यह ध्यान में ही रख कर करने चाहिए की कर मन ,वचन एवं कर्म से किसी प्राणी की हानि या अपमान ना हो. तथा इन विशेष बातों का ध्यान अवश्य ही रखना चाहिए.
मनुष्य का मान सम्मान नष्ट हो जाने पर जीवित होते हुए भी मृत्यु के समान है.
जो व्यक्ति दूसरों का शोषण करता है वह इसी जीवन में विभिन्न व्याधियों से ग्रस्त होकर नरक को भोगता है
अपने विशिष्ट अधिकार अहंकार से अलग रहकर दूसरों के अधिकारों का सम्मान और रक्षण करने वाला मनुष्य ही इस लोक में सम्मान को प्राप्त करता और यशश्वी होता है.
मनुष्य को वह बातें याद रखनी चाहिए जो याद रखने योग्य हैं, उसे याद रखें. जो भूलने लायक हैं उसे भुला देना देना चाहिए. इसी में मानव की विवेक शक्ति की परख होती है. इसलिए यादें हमारे जीवन के लिए सुखदाई भी हो सकती हैं और दुःखदाई भी.
मनुष्य को सही वक्त पर सही और पर्याप्त बाते ही बोलनी चाहिए. और हमेशा ईश्वर का चिंतन करना चाहिए. सोच विचार कर ही कार्य करना चाहिए. इसलिए कहा गया है.
बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए
काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाये.
इसलिए पीछे पछताने से कोई फायदा नहीं है. हमें सारे काम सोच समझ कर ही करने चाहिए.
भक्तों आज अपने ज्ञान की गंगा में स्नान किया, इसका लाभ आपको अवश्य मिलेगा.
स्वामी ललितानंद जी महाराज
आप सभी उपस्थित भक्तों को स्वामी ललितानंद जी महाराज का आशीष।
हे! परभू..... परनाम..... पांय लागिन..... आपके इस परवचन से हम बहुते अभिभूत हूँ.... हमरा सब भूत भाग गया है....
ReplyDeleteश्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी.... बाबा... परनाम....पांय लागिन..... बाबा..... हमरा के आशीर्वाद दे दीजिये...... और आस्रम में जगह दीजिये.... रामप्यारी के साथ पडा रहूँगा....
ांब आपकी तो जय करनी ही पडेगी। आपने तो बाबाओं के खिलाफ चलाया हमारा प्लान ही फेल कर दिया।बाबा जी धन्य हो।
ReplyDeleteधन्य हुए प्रभु आपकी अमृत वाणी से ....
ReplyDeleteमन ,वचन एवं कर्म से किसी प्राणी की हानि या अपमान ना हो...में वाणी की गुन्जायिश होने के बावजूद भी प्रयोग नहीं किया गया ..ऐसे ही कृपालु बने रहे ..बहुत आभार...
माता अदाम्बिके तक हमारा प्रणाम पहुंचाएं और कुछ उनके श्री मुख से उद्गारित प्रवचन भी सुनवाएं ...
जय हो बाबा ललितानंद की ...!!
आज हमने ज्ञान की गंगा में स्नान किया, इसका लाभ हमको अवश्य मिलेगा यह आशीर्वाद पाकर धन्य हुए प्रभु। पर अज्ञात के प्रति जिज्ञासा बढ़ गई है।
ReplyDeleteजय हो बाबा ललितानंदji की जय
ReplyDeleteज्ञान की गंगा का अद्भुत प्रवाह !!!
ReplyDeleteजय हो बाबा ललितानंदजी की जय...
ReplyDeleteज्ञानचक्षु खुल गये. बहुत ही लाभ मिला आपके सदवचनों से.
जारी रहिये बाबा!!!
जय हो महाराज जी की.
ReplyDeleteहे भगवान क्या ललितानंद अवतार हो गया ? मैं यह साक्षात क्या देख रहा हूँ ?
ReplyDeleteधन्य रे धन्य प्रभु तेरी महिमा अपरम्पार -कुम्भ आगमन से कृतार्थ करे प्रभु !