Thursday, December 31, 2009

वर्ष २०१० में आपके चिट्ठे का भविष्य: श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी


सुनें अपने चिट्ठों का वर्षफल श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी के श्री मुख से. यह आपके चिट्ठे के अंग्रेजी नाम के आरंभिक शब्द पर आधारित है: तुरंत देखें, आपका चिट्ठा किस शब्द से शुरु होता है और जानें वार्षिक फल:

सर्वप्रथम हिन्दी ब्लॉगजगत का संभावित भविष्य:

वर्ष २०१० मिश्रित फलकारी रहेगा. जहाँ एक ओर नये चिट्ठाकार निरंतर जुड़ते जायेंगे, कुछ पुराने चिट्ठाकार विवादों में पड़ अपने चिट्ठे बंद करने की कागार पर आ जायेंगे. गुटबाजी की संभावनाएँ बनी रहेंगी और सच होने के बाद भी नकारी जायेंगी. नये एग्रीगेटर्स आयेंगे, पुरानों में सुधार आयेगा और एक नया रुप प्रस्तुत किया जायेगा. चर्चा मंचों की बाढ़ आ जायेगी. बात बात में विवाद होंगे जिनके मुख्य विषय लिंगीय भेदभाव, धर्म और व्यक्तिगत महत्ता में कमी होंगे. अनेकों चिट्ठाकारी सम्मेलनों और मिलनों का आयोजन होगा.

A,C,F,G,U, R

यह साल आपके चिट्ठे के लिये बहुत शुभकारी रहेगा. वर्ष के पूर्वार्द्ध में टिप्पणियां बहुतायत में मिलेंगी. इस अति प्राप्ति के अहम में डुबकर आप अपने आपको एक वरिष्ठ चिट्ठाकार मानने लगेंगे और आपकी प्रविष्टियों की गुणवत्ता पर इसका प्रभाव दिखने लगेगा और उसमें कमी आने की संभावनायें हैं. गुणवत्ता की गिरावट के साथ ही प्रविष्टियां प्रविष्टी कम और खानापूर्ति ज्यादा नजर आने लगेंगी. कुछ अहम और कुछ आलस्यवश, जो कि वरिष्टता के साथ आना स्वभाविक है, आप दूसरे के ब्लागों पर टिप्पणियां करना कम देंगे या सिर्फ़ औपचारिकतावश, बढ़ियां है या अच्छा लगा, तक सीमित हो जायेंगे जो कि आपके ब्लाग पर वर्ष के उत्तरार्ध में आई टिप्पणियों की कमी का कारण बनेगा.एक बात पर आप विशेष ध्यान दें कि जो भी लिखें वो दूसरों को समझ में पूरी तरह आये या बिल्कुल न आये, तभी टिप्पणियां मिलेंगी.

E,K,L,M, X

इस वर्ष आपके चिट्ठे को मिले जुले परिणाम मिलेंगे. टी आर पी की बढ़त के बावजूद टिप्पणियों की संख्या में भारी गिरावट आयेगी. ब्लाग पर स्थानान्तरण योग है. अगर आप ब्लाग स्पाट पर हैं तो संभव है आप वर्ड प्रेस पर स्थानान्तरित हो जायें मगर प्राईवेट होस्टिंग का अगर मन बनाते हैं तो पहले ट्रेफिक काउंटर लगा कर अपनी औकात का आंकलन कर लें अन्यथा कहीं लेने के देने न पड़ जायें. कभी आपको यह अहसास भी हो सकता है कि आप इससे कुछ कमा लेंगे. तो ऐसे बहकावे में न आयें. इस तरह की अफवाह फैलाने वाले खुद भी फ्री ब्लाग स्पाट पर ही हैं और वो इतना बेहतरीन लिख लिख कर कुछ नहीं उखाड़ पा रहे तो आप क्या कर लोगे. कम से कम दृष्टिगत भविष्य में तो इसकी संभावनायें नहीं दिखती हैं.कई बार आपकी अच्छी पोस्ट भी लोग पढ़ने से कतरा जाते हैं. उसके लिये सिद्ध मंत्र है कि पोस्ट का शीर्षक भड़काऊ रखें ताकि लोग उसे देखें जरुर, भले ही उसका पोस्ट से कुछ लेना देना न हो. लोग शीर्षक और पोस्ट के सामान्जस्य को बिठाने के चक्कर में ही पूरी पोस्ट पढ़ जायेंगे. ऐसे शीर्षकों के लिये रामायण और गीता की पंक्तियां या कबीर और रहिम के दोहों के अंश उच्च फलकारी होते हैं.


B,D,H,W,Z

चिट्ठे का तो खैर जो भी हो, आपके तिरछे तेवर के कारण आपकी बदनामी तय है और उसका परिणाम झेलेगा बेचारा आपका चिट्ठा बिना किसी वजह के. कोशिश करके इस वर्ष कम से कम लिखें और जब भी लिखें तो सिर्फ लिखें न की बकर करें. दूसरों के उपहास से सबको फायदा नहीं पहूँचता, यह आपको याद रखना चाहिये. न्यायालय में घसीटे जा सकते हैं. यह ब्लाग जगत बहुत सेंसिटिव जगह है, यहां कब कैसे और क्यूँ कोई बुरा मानेगा और आप पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, कोई नहीं जानता. इसके आगे सब ग्रह नक्षत्र फेल हैं.आप में से कुछ ने जो पूर्व में कीर्तिमान स्थापित कियें है, उनसे परेशान हो कर शत्रु वर्ग आपको तरह तरह से परेशान कर सकता है, मसलन छदम भेष धर कर आपके नाम से टिप्पणी या आपके चिट्ठे की हैकिंग का प्रयास इत्यादि. ऐसे में विचलित होने की आवश्यकता नहीं है. संयम बनाये रखें, अपनी स्थिती स्पष्ट करते रहें और अपना कार्य पूर्ववत जारी रखें.


P,Q,N,S,O

आपका चिट्ठा इस वर्ष उतार चढ़ाव के नये कीर्तिमान स्थापित करेगा. कुछ चिट्ठे वर्षांत के पहले बंद होने की कागार पर आ जयेंगे, तो कुछ बंद हो चुके होंगे. वहीं कुछ अपने होने का ऊँचा परचम लहरा रहे होंगे. अति उत्साह अक्सर पूर्ण विराम की ओर अग्रसित मार्ग का फ़्लाई ओवर होता है. आपको सलाह दी जाती है कि उत्साहपूर्वक लिखना अच्छी बात है मगर अति उत्साह के प्रवाह में बहकर कुछ भी लिखना घातक सिद्ध हो सकता है. संभल कर चलें.अपने ब्लाग को लोकप्रिय बनाने के तमाम उपायों को अंगिकृत करने से पहले पढ़नीय सामग्री प्रेषित करें और मात्र खानापूर्ति के सिवाय कुछ वाकई में लिखें ताकि इस टिप्पणी, जिसे आप तारीफ मानते हैं, "क्या लिखा है", के अदृश्य प्रश्नचिन्ह को भी आप देख पायें.."क्या लिखा है ?" तो कोई आश्चर्य न होगा.चिट्ठे के बंद करने की घोषणा कई बार उसको नये आयामों तक ले जाती है और कई बार इसके बड़े अच्छे परिणाम देखे गये हैं, दोनो तरह से टी आर पी और टिप्पणी के आधार पर. पर यह कार्य काठ की हांड़ी जैसा है जो बार बार नहीं चढ़ाई जा सकती, अतं में इसे अजमाने के पहले साख अच्छी जमा लें और एकदम ब्रह्मास्त्र की तरह उपयोग करें.


I,J,T,V,Y


बस आप अंतिम हैं, और अंतिम टाईप लग भी रहे हैं. भईया, आपका तो क्या कहें, जब तक लिखोगे नहीं तो पूछेगा कौन. न तो आप कोई ऐसी कोशिश करते हो कि एग्रीगेटर की उच्च पायदान पर बनें रहें और न ही बहुत अच्छा मटेरियल लाते हो. सिर्फ दूसरों की प्रस्तुति प्रस्तुत कर और फोटो सोटो चिपका कर क्या दुनिया की अस्मिता लूट लोगे? टिप्पणी भी चाहिये, एग्रीगेटर भी आपको रिपोर्ट करे और चर्चामंच वाले भी आपके गुणगान करें और आप बैठे ठर्राओ. ऐसा कहीं होता है क्या? एग्रीगेटर महात्म पढ़ना शुरु कर दें हर बुधवार को और चिट्ठाकारों से मधुर सबंध बनाओ. चिट्ठे के बंद करने की घोषणा कई बार उसको नये आयामों तक ले जाती है और कई बार इसके बड़े अच्छे परिणाम देखे गये हैं, दोनो तरह से टी आर पी और टिप्पणी के आधार पर. पर यह कार्य काठ की हांड़ी जैसा है जो बार बार नहीं चढ़ाई जा सकती, अतं में इसे अजमाने के पहले साख अच्छी जमा लें और एकदम ब्रह्मास्त्र की तरह उपयोग करें. ब्लाग का स्थानन्तरण कुछ असर दिखायेगा, शायद नई जगह पहूँचने का स्वागत समारोह में कुछ टिप्पणियों से नवाजा जाये या कम से कम स्थानान्तरण की सूचना की एक मौलिक पोस्ट तो बन ही जायेगी.


इसके सिवाय यदि कोई अपने ब्लाग की पर्सनल समीक्षा चाहता है तो वो आश्रम में २१ टिप्पणियां कर दें और उनका विवरण दे हमें अलग से ईमेल करें, हम उसको अलग से बतायेंगे. अरे भई, सब कुछ तो सार्वजनिक किया नहीं जा सकता हालांकि अब बचा क्या है. :)


-बाबा समीरानन्द द्वारा पूर्व घोषित भविष्यफल में फेरबदल कर रीठेल

Wednesday, December 23, 2009

स्वामी महफूज़ानंद महाराज जी आश्रम के अर्थ-प्रबंधक घोषित

सूचना

प्रिय भक्तों

बाबा समीरानन्द का शुभाषीश!

बहुत हर्ष का विषय है कि आज श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी के शिष्य बाबा स्वामी महफूज़ानंद महाराज जी को बाबा समीरानन्द आश्रम का अर्थ-प्रबंधक घोषित किया जाता है.

बाबा स्वामी महफूज़ानंद महाराज जी अपने ज्ञान, लगन, अर्थ-प्रबंधकीय अनुभव और आस्था के आधार पर इस महत्वपूर्ण पद को प्राप्त हुए हैं.

श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का उन्हें विशिष्ट स्नेह प्राप्त है.

बाबा स्वामी महफूज़ानंद महाराज जी अति अनुभवी एवं ज्ञानी हैं. उनका अध्ययन एवं अर्थ प्रबंधकीय अनुभव सभी को लाभांवित करेगा, ऐसा श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का विश्वास है.

आप सब उनका स्नेह एवं आशीष प्राप्त करें.



-जय श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी की-
-जय बाबा श्री ताऊआनंद महाराज की-
-जय बाबा स्वामी ललितानंद महाराज जी की-
-जय मां अदा चैतन्य कीर्ति महाराज साहिबा जी की-
-जय बाबा स्वामी महफूज़ानंद महाराज जी की-




-आश्रम मेनेजमेन्ट

Tuesday, December 22, 2009

स्वामी ललितानंद महाराज प्रवचनमाला भाग -5- सो पाछे पछताए !!!


बाबा स्वामी ललितानंद महाराज




प्रिय भक्तों,
आज प्रवचन माला का पांचवा  दिन है.आपका हार्दिक स्वागत है। भक्तों की उपस्थिति दिनों-दिन बढ़ते रही है. आगे के प्रवचनों में पंडाल का विस्तार किया गया है. सेवा के लिए आश्रम में नए भक्त भी आ रहे हैं ताकि आपको परेशानी मत हो. आप शांति से बैठ कर सद्वचनों का श्रवण करें.आपकी विहंगम उपस्थिति से हम प्रफ़ुल्लित हैं.

उपस्थित सज्जनों और सन्नारियों और प्यारे बच्चा लोगों को आशीर्वाद, कल के शब्द के चिंतन को हम आगे बढ़ाते हैं.

बार बार यह तन नहीं नर नारायण देह 
दादू बहुर न पाईये जनम अमोलक येह

ईश्वर ने हमें यह तन दिया है संसार में भला करने के लिए, सभी प्राणियों की सेवा और उनसे प्रेम भाव बना कर रखने के लिए. इस देह में स्वयं परमेश्वर बसते हैं. इस लिए हमारे से जितना भी हो सके भली ही करनी चाहिए. यह तन अमूल्य है. बड़ी मुस्किल से कई जन्मों का पुण्य संचित होने के बाद ही ईश कृपा से प्राप्त होता है.

इसलिए कहा गया है.
बड़े   भाग  मानुस तन पावा
सुर दुर्लभ सब ग्रन्थहि गावा

हमें अपने जीवन के समस्त सांसारिक कार्य यह ध्यान में ही रख कर करने चाहिए की कर मन ,वचन एवं कर्म से किसी प्राणी की हानि या अपमान ना हो. तथा  इन विशेष बातों का ध्यान अवश्य ही रखना चाहिए.

मनुष्य का मान सम्मान नष्ट हो जाने पर जीवित होते हुए भी मृत्यु के समान है.

जो व्यक्ति दूसरों का शोषण करता है वह इसी जीवन में विभिन्न व्याधियों से ग्रस्त होकर नरक को भोगता है

अपने विशिष्ट अधिकार अहंकार से अलग रहकर दूसरों के अधिकारों का सम्मान और रक्षण करने वाला मनुष्य ही इस लोक में सम्मान को प्राप्त करता और यशश्वी होता है.


मनुष्य को वह बातें याद रखनी चाहिए जो याद रखने योग्य हैं, उसे याद रखें. जो भूलने लायक हैं उसे भुला देना देना चाहिए. इसी में मानव की विवेक शक्ति की परख होती है. इसलिए यादें हमारे जीवन के लिए सुखदाई भी हो सकती हैं और दुःखदाई भी.

मनुष्य को सही वक्त पर सही और पर्याप्त बाते ही बोलनी चाहिए. और हमेशा ईश्वर का चिंतन करना चाहिए. सोच विचार कर ही कार्य करना चाहिए. इसलिए कहा गया है.

बिना  विचारे जो करे सो पाछे पछताए
काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाये. 
इसलिए पीछे पछताने से कोई फायदा नहीं है. हमें सारे काम सोच समझ कर ही करने चाहिए. 


भक्तों आज अपने ज्ञान की गंगा में स्नान किया, इसका लाभ आपको अवश्य मिलेगा.


स्वामी ललितानंद जी महाराज

आप सभी उपस्थित भक्तों को स्वामी ललितानंद जी महाराज का आशीष।

Thursday, December 17, 2009

स्वामी ललितानंद महाराज प्रवचनमाला भाग -4- सोच समझ कर बोलो!!!


बाबा स्वामी ललितानंद महाराज




प्रिय भक्तों,
आज प्रवचन माला का चौथा दिन है.आपका हार्दिक स्वागत है। भक्तों की उपस्थिति दिनों-दिन बढ़ते रही है. आगे के प्रवचनों में पंडाल का विस्तार किया गया है. सेवा के लिए आश्रम में नए भक्त भी आ रहे हैं ताकि आपको परेशानी मत हो. आप शांति से बैठ कर सद्वचनों का श्रवण करें.आपकी विहंगम उपस्थिति से हम प्रफ़ुल्लित हैं.

उपस्थित सज्जनों और सन्नारियों और प्यारे बच्चा लोगों को आशीर्वाद, कल के शब्द के चिंतन को हम आगे बढ़ाते हैं.


हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए. ईश्वर ने हमें वाणी का उपहार सभी प्राणियों की भलाई के लिए दिया है. इसलिए वाणी का उपयोग प्राणियों की भलाई के लिए होना चाहिए. हानि के लिए नहीं.

मनुष्य को मितभाषी होना चाहिए. जब जब मनुष्य अधिक बोलेगा तो मर्यादाओं का अतिक्रमण होगा और वह स्वयं ही लोगों का कोप भाजन बन जायेगा. अत: हित भाषण के साथ मित भाषण भी आवश्यक है.


हमारे मनीषियों ने मित भाषण के विषय में बहुत ही मनोहारी वचन कहे है.


सक्तुमिव तितउना पुनन्तो यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत.
अत्र सखाय: सख्यानि जानते भद्रैषाम लक्ष्मीर्निहिताधि वाचि.

जैसे सत्तू को पानी में घोलने से पहले छलनी में छान कर देख लेते हैं कि ऐसी कोई अभक्ष्य वास्तु ना चली जाये जो पेट में विकार पैदा करे. उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति शब्द रूपी आटे को मंत्र रूपी छलनी में छान कर बोलता है.ऐसे लोग ही मित्रता बनाये रखने के नियमो को जानते हैं और मंत्रणा (सोच समझ) कर बोलने वाले पुरुष और स्त्री की वाणी में लक्ष्मी, शोभा और संपत्ति निवास करती है.


जिव्हाया अग्रे मधु में जिव्हा मूले मधुलकं.


हे मनुष्य ईश्वर से प्रार्थना कर कि "मेरी वाणी के अग्र भाग में मधु रहे और जीभ की जड़ अर्थात बुद्धि में मधु का छत्ता रहे. जहाँ मिठास का भंडार भरा रहे.


नीतिकार ने कहा है.

रोहति सायकैर्विध्दम छिन्नं रोहति चासिना
वाचो दुरुक्तं विभत्सम न पुरोहति वाकक्षतं.

तीरों का घाव भर जाता है., तलवार से कटा हुआ भी ठीक हो जाता है. किन्तु कठोर वाणी का भयंकर घाव कभी नहीं भरता.

उर्दू शायर ने कहा है

नोके-जुबां से तेरे सीने को छेद डाला
तरकश में है तीर या है जुबां दहन में

किसी अंग्रेजी कवि ने कहा है

Speak gently! -- it is a little thing
Dropped in the heart's deep well;
The good, the joy, which it may bring,
Eternity shall tell.


मधुर भाषण एक छोटी वस्तु है, किन्तु यह ह्रदय के गंभीर कुंए में गिराई जाती है. इसके परिणाम स्वरूप जो सुख और प्रसन्नता प्राप्त होती है उसे समय ही बत्येगा.

एक दुसरे विद्वान् ने भी बड़े ही सुन्दर ढंग से कहा है.

"These abuses and taunts can be forgiven, but not forgotten"


किसी के अपशब्द और व्यंग्य वचन क्षमा तो किये जा सकते हैं , लेकिन भुलाये नहीं जा सकते.


इसी लिए भक्तों वाणी के महत्व को समझो और इसका सदुपयोग करो,


अधरों पर शब्दों को लिखकर मन के भेद ना खोलो
मैं आँखों से ही सुन सकता हूँ तुम आँखों से ही बोलो


फिर करना निष्पक्ष विवेचन मेरे गुण और दोषों का
पहले अपने मन के कलुष नयन के गंगा जल में धोलो


संबंधों की असिधारा पर चलना बहुत कठिन है
पग धरने से पहले अपने विश्वासों को तोलो


स्नेह रहित जीवन का कोई अर्थ नहीं होता है
मेरे मीत ना बन पाओ तो और किसी के होलो


ये वाणी वाण ह्रदय को छलनी कर देते हैं.
सत्य बहुत तीखा होता है सोच समझ कर बोलो


भक्तों आज अपने ज्ञान की गंगा में स्नान किया, इसका लाभ आपको अवश्य मिलेगा. अब कल का प्रवचन हमारे बड़े महाराज स्वामी ताऊआनंद जी महाराज करेंगे. आप श्रवण दर्शन लाभ प्राप्त करे.


स्वामी ललितानंद जी महाराज

आप सभी उपस्थित भक्तों को स्वामी ललितानंद जी महाराज का आशीष।

Tuesday, December 15, 2009

स्वामी ललितानंद महाराज प्रवचनमाला भाग - 3- शब्दै मारा गिर पड़ा








बाबा स्वामी ललितानंद महाराज




प्रिय भक्तों,
हमारे इस  प्रवचन की तीसरी माला में आपका हार्दिक स्वागत है।


आज हम "शब्द" पर बात करते हैं, ईश्वर अपनी बात और मनोभावों को व्यक्त करने के लिए वाणी का अनुपम उपहार दिया है,  इस उपहार के लिए हम परम पिता परम पिता परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं, और उनके प्रति कृतज्ञता प्रगट करते है, 


शब्द की महिमा अपरम्पार है, कहा गया हैं न "बातन हाथी पाईये और बातन हाथी पांव" मुंह से निकला हुआ शब्द कभी व्यर्थ नहीं जाता और जब शब्द मुंह से बाहर निकल जाता है तो वह अपना प्रभाव उत्पन्न कर परिणाम भी देता है. यह परिणाम हमें कभी प्रत्यक्ष रूप से और कभी अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होता  ही है. 


इसी लिए हमारे मनीषियों ने कहा है, "सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, अप्रियम सत्यं  न ब्रूयात" अगर आपको सत्य भी कहीं कहना पड़े तो उसे प्रियता के साथ कहें क्योंकि सदा से सत्य कहना,बोलना और सुनना हमेशा कठिन रहा है.  


हथियार का घाव भर जाता है लेकिन शब्द की मार का घाव नही भरता है. 


"ये वाणी वाण ह्रदय को छलनी कर देते हैं, सत्य बहुत तीखा होता है, सोच समझ कर बोलो"


इसलिए भक्तों सोच समझ कर चिंतन करके बोलना आवश्यक है. मोल तोल के बोलने वाला हमेशा सुखों को प्राप्त  करता है और कटु वचन कहने वाला व्यक्ति स्वयं ही संतापों से घिर जाता है, इसलिए हमें बहुत ध्यान से बोलना चाहिए,  


यही शब्द ही शत्रु और मित्र बनाते हैं, इस लिए भक्तों हमें उस कटु वाणी और शब्दों से बचना चाहिए जो संतापकारी हैं, जो शब्द हम अपने लिए सुनना नहीं चाहते वे शब्द हम दूसरों को कहने से बचें तो अवश्य ही हमारे जीवन में एक नए आनंद का संचार होगा


हमारे संतों ने शब्द की महिमा का बखान किया है उस पर अमल करके आप इस चराचर जगत के आनंद को प्राप्त कर सकते हैं.और इसपर मनन करके परम शांति को प्राप्त कर सकते हैं। 




आज बस इतना ही, ॐ ॐ  शांति शांति शांति,



शब्दै  मारा   गिर      पड़ा,    शब्दै      छोड़ा     राज.
जिन्ह-जिन्ह  शब्द विवेकिया,तिन्ह का सरिगो काज .


एक शब्द गुरु देव का, ता का अनंत विचार
थाके  मुनि  जन  पंडिता,   बेद ना पावे पार


शब्द हमारा तू शब्द का, सुनि मति जाहू सरक 
जो चाहो निज सुख को, तो शब्द ही लेहु परख 


शब्द बिना सुरति आंधरी,कहा कहाँ को जाय 
द्वार ना पावे शब्द का, फिर फिर भटका खाय  





स्वामी ललितानंद महाराज जी

  
आप सभी उपस्थित भक्तों को  स्वामी ललितानंद जी महाराज का आशीष ।

  



Monday, December 14, 2009

मां अदा चैतन्य कीर्ति महाराज साहिबा जी आश्रम के महिला प्रभाग की महा-प्रबंधक घोषित

सूचना

प्रिय भक्तों

बाबा समीरानन्द का शुभाषीश!

बहुत हर्ष का विषय है कि आज श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी की शिष्या मां अदा चैतन्य कीर्ति महाराज साहिबा जी को बाबा समीरानन्द आश्रम के महिला प्रभाग की महा-प्रबंधक घोषित किया जाता है.

मां अदा चैतन्य कीर्ति महाराज साहिबा जी अपने ज्ञान, लगन, प्रबंधकीय अनुभव और आस्था के आधार पर इस महत्वपूर्ण पद को प्राप्त हुईं हैं.

श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का उन्हें विशिष्ट आशीष प्राप्त है.

मां अदा चैतन्य कीर्ति महाराज साहिबा जी अति अनुभवी एवं ज्ञानी हैं. उनका अध्ययन एवं प्रबंधकीय अनुभव सभी को लाभांवित करेगा, ऐसा श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का विश्वास है.

ध्यान दिया जाया कि उन्हें इस पद हेतु वह सभी सुविधायें एवं दर्जा प्राप्त होंगा जो कि एक महंत को प्राप्त होता है.

आप सब उनका स्नेह एवं आशीष प्राप्त करें.





-जय श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी की-

-जय बाबा श्री ताऊआनंद महाराज की-
-जय बाबा स्वामी ललितानंद महाराज जी की-
-जय मां अदा चैतन्य कीर्ति महाराज साहिबा जी की-



-आश्रम मेनेजमेन्ट

Sunday, December 13, 2009

स्वामी ललितानंद महाराज प्रवचनमाला भाग - 2 "गुरु सिकलीगर कीजिए"




बाबा स्वामी ललितानंद महाराज




प्रिय भक्तों,
आज प्रवचन माला का दूसरा दिन है.आपका हार्दिक स्वागत है। भक्तों की उपस्थिति दिनों-दिन बढ़ते रही है. लगता है अब आगे के प्रवचनों में पंडाल का विस्तार करना पड़ेगा. आपकी विहंगम उपस्थिति से हम प्रफ़ुल्लित हैं.

उपस्थित सज्जनों और सन्नारियों और प्यारे बच्चा लोगों को आशीर्वाद.

बच्चा लोगों इस दुनिया में नकली ढोंगी बाबा लोगों का जाल बढ़ता जा रहा है और असली संतों को भी इसका नुकसान उठाना पड रहा है. ये नित नए विवादों को जन्म देते है, जबकि संतों का काम है समाज में सौहाद्र स्थापित करके एक आनंदमयी वातारवरण का निर्माण करना.

अब प्रश्न ये उठता है कि असली-नकली की पहचान कैसे हो?

धार्मिक श्रद्धा और विश्वास के कारण हम गुरु तो बना लेते हैं, लेकिन बाद में फंस जाते हैं, इस लिए कहा गया है" पानी पियो छान कर, गुरु बनाओ जान कर", यह अति आवश्यक है, नहीं तो "लोभी गुरु लालची चेला दोनों खेले दांव, भाव सागर में डूबते, बैठ पत्थर की नाव" दोनों ही डूबे,

इसलिए भक्तों एक बात गांठ बांध लो, "ये भी देखो, वो भी देखो, देखत-देखत इंतना देखो, मिट जाये धोखा रह जाये एको", भक्तों हमारे आध्यात्मिक गुरुओ में ये गुण अवश्य होने चाहिए " उनका स्वभाव शुद्ध हो, जितेन्द्रिय हो,धन का लालच हो ही नहीं, शास्त्रों का ज्ञाता हो, सत्य तत्व को पा चूका हो, परोपकारी हो,दयालु हो, सत्यवादी हो, शांतिप्रिय हो, योग विद्या में निपुण हो, जिसमे शिष्य के दुर्गुण दूर करने की क्षमता हो, स्त्रियों में अनाशक्त हो, क्षमावान हो, धैर्यशाली हो, चतुर हो, अव्यसनी हो, प्रिय भाषी हो, निष्कपट हो,निर्भय हो, पापों से बिलकुल परे हो, सदाचारी हो, सादगी से रहता हो, धर्मप्रेमी हो, जीवमात्र का सुहृद हो, और शिष्य को पुत्र से भी बढ़ कर चाहता हो, समस्त चराचर जगत के कल्याण के लिए हो," इतने गुणों से युक्त होने से ही संत होकर इस संसार का कल्याण करने की क्षमता प्राप्त होती है",

भक्तों अब विराम और विश्राम का समय हो चुका है, अब आप असली-नकली का निर्णय स्वयं कर सकते हैं, कठिनाईयों और झंझावातों से भरे इस जीवन में शांति का अनुभव कर सकते हैं.



"पछा पछि के कारने, सब जग रहा भुलान
निरपक्ष होय के हरी भजे, सोई संत सुजान"

"जा का गुरु है आंधरा , चेला काह कराय
अंधे अँधा पेलिया, दोनों कूप पराय"

"जाना नहीं बुझा नहीं,समुझि किया नहीं गौन
अंधे को अँधा मिला, राह बतावे कौन"

"गुरु सिकलीगर कीजिए, मनहि मस्कला देई
शब्द छोलना छोलिके, चित्त दरपन कर लेई"


स्वामी ललितानंद जी महाराज

आप सभी उपस्थित भक्तों को स्वामी ललितानंद जी महाराज का आशीष।

Saturday, December 12, 2009

सूर्य नमस्कार: श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी

स्वस्थ मन और निरोगी काया के लिए सभी भक्तों से निवेदन है कि प्रातः नित नियम से कम से कम ५ बार सूर्य नमस्कार करें.

यह संख्या शनैः शनैः बढ़ा कर दस बार तक ले जाना है.

सूर्य नमस्कार की पूरी विधि नीचे चित्र के माध्यम से दर्शायी गई है. किसी भी प्रकार के शंका निवारण हेतु आश्रम पधारें या लिखें. समस्त शंकाओं का निवारण किया जायेगा.




सूर्य नमस्कार करने का तरीका


सभी का कल्याण हो.

भक्तों को अनन्त आशीष.

-बाबा समीरानन्द

Thursday, December 10, 2009

स्वामी ललितानंद महाराज प्रवचनमाला भाग - 1



प्रिय भक्तों,
हमारे इस प्रथम प्रवचन मे आपका हार्दिक स्वागत है। आपकी विहंगम उपस्थिति से हम प्रफ़ुल्लित हैं. आज  समस्त चराचर जगत दुख से परेशान हो रहा है.चारों तरफ़ हाहाकार मचा हुआ है। कोई किसी की टांग के पीछे पड़ा है कोई किसी के कान के पीछे पड़ा है, हम साक्षी भाव से घटित को देख रहे है और चिंतन कर रहे हैं. आज हम अपने मनीषियों के दिए ज्ञान के पंथ से विमुख हो कर नित नये दुखों से त्रस्त हैं, हमें अपनी सस्कृति के प्रति रूचि होगी तो ज्ञान होगा, ज्ञान होगा तो मंगल होगा, ध्यान होगा तो भक्ति का उदय होगा, भक्ति से आनंद  का उदय होगा. जिस आनंद से आज हम वंचित है वह हमें सहज ही प्राप्त होगा, इस लिए हमने चिंतन करके कुछ सद्वचन भक्तों के मार्ग दर्शन के लिए कहे हैं. उस पर अमल करके आप इस चराचर जगत के आनंद को प्राप्त कर सकते हैं.हमारे द्वारा रचित एक कविता सुनिये। और इसपर मनन करके परम शांति को प्राप्त होईये।
"जउ सुख कउ चाहे सदा, सरनी राम की लेह 
कहू  नानक  सुन  रे मना, दुर्लभ मानुष देह"

मनन शील होंने पर ही प्राणी सदा मनुष्य कहलाता है
नित चिंतन करने से ही सदा राह प्रभु की पाता है॥

सोने से पहले सोचो जरा, क्या प्यारे प्रभु को याद किया
चुगली, निंदा, बुरे कर्म में कितना समय बरबाद किया

अपने वचन कर्म से आज समाज का कितना हित किया 
तुच्छ लाभ पाने हेतु गरीब को, हक से वंचित नही किया 

मैंने कितना निर्माण किया, कितना किसको उजाड़ दिया 
इर्ष्या, जलन, द्वेष डाह से युक्त, कितना किसका बिगाड़ किया 

अच्छे बुरे की पहचान करने में कहीं भूल तो नहीं हुई 
मेरे कारण किसी प्राणी की आज जन तो नहीं गई


मेरी वाणी स्वभाव बर्ताव से कोई दुखी तो नहीं हुआ
कोई पीड़ित खिन्न या त्रस्त तो मुझसे  नहीं हुआ


क्या सामाजिक न्याय और शोषण में मै भी भागीदार बना
शोषण का शिकार हुआ या उसका प्रतिकार किया घना


जीवन में दुःख का कारण जानने आत्म निरिक्षण स्वयं ही करें
क्रिया व्यवहार और वाणी में दोषों को पकड़ें और स्वयं ही दूर करें


नित यह चिंतन करके देखो बढ़ी दूरियां कैसे घटती हैं
कैसे घटता कटुतापन निराशा कैसे संबंधों की बेली बढ़ती है


ध्यान रहे! प्रत्येक कार्य में ईश्वर का नित स्मरण रहे
फिर जीवन हो जाये नंदनवन, क्यों दुःख का आभरण रहे


स्वामी ललितानंद जी महाराज

  
आप सभी उपस्थित भक्तों को  स्वामी ललितानंद जी महाराज का आशीष ।

  



Wednesday, December 9, 2009

स्वामी ललितानंद महाराज जी आश्रम के महा-प्रबंधक घोषित-महंत का दर्जा

सूचना

प्रिय भक्तों

बाबा समीरानन्द का शुभाषीश!

बहुत हर्ष का विषय है कि आज श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी के शिष्य बाबा स्वामी ललितानंद महाराज जी को बाबा समीरानन्द आश्रम का महा-प्रबंधक घोषित किया जाता है.

बाबा स्वामी ललितानंद महाराज जी अपने ज्ञान, लगन, प्रबंधकीय अनुभव और आस्था के आधार पर इस महत्वपूर्ण पद को प्राप्त हुए हैं.

श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का उन्हें विशिष्ट स्नेह प्राप्त है.

बाबा स्वामी ललितानंद महाराज जी अति अनुभवी एवं ज्ञानी हैं. उनका अध्ययन एवं प्रबंधकीय अनुभव सभी को लाभांवित करेगा, ऐसा श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का विश्वास है.

ध्यान दिया जाया कि उन्हें इस पद हेतु महंत का दर्जा प्राप्त रहेगा.

आप सब उनका स्नेह एवं आशीष प्राप्त करें.






-जय श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी की-
-जय बाबा श्री ताऊआनंद महाराज की-
-जय बाबा स्वामी ललितानंद महाराज जी की-




-आश्रम मेनेजमेन्ट

भक्तों की वाणी : आश्रम के लिए सर्वोपरि!!

हमारे आश्रम में भक्तों की वाणी को विशेष महत्व दिया जाता है.

हम समझते हैं कि भक्तों से हम हैं, हम से भक्त नहीं.

नोट:

-भक्त अपने मन की बात खुल कर कहें.

-यहाँ भक्तों का मजाक नहीं उड़ाया जाता.

-भक्त और भगवान के बीच हम सेतु मात्र हैं.


भक्त १:

मैं पिछले बहुत दिनों से अपना चिट्ठा लिख रहा था मगर कोई पढ़ता ही नहीं था. हताश होकर बाबा की शरण में आया. उन्होंने एग्रीगेटरर्स पर मेरा पंजीकरण कराया और शुभाशीष दिये. अब ढ़ेरों पाठक हैं. बाबा जी की जय. बाबा जी के आश्रम की अंगूठी चमत्कारी सिद्ध हुई.


भक्त २:

बाबा की विशेष कृपा है. जैसे ही हवन करवाया, तुरंत टिप्पणियों का अंबार लग गया और बाबा ने इसके गुर सिखाये. बाबा जी के जितने भी गुण गाऊँ, कम है. सर्वमनोकामना सिद्धि यंत्र बाबा जी से प्राण प्रतिष्ठा करवा कर ब्लॉग पर लगाने से अद्भुत परिणाम मिले.


भक्त ३:

बाबा जी लिखने पढ़ने का सलीका सिखाया. लोगों का आदर करना सिखाया. बाबा जी ने मुझे सही और सार्थक जीवन की राह दिखाई. उनके द्वारा दिया गया लॉकेट हर वक्त धारण रखता हूँ. इससे मुझे जबरदस्त आत्मविश्वास मिलता है.


बाबा जी जिन्दाबाद.

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-बाकी भक्तों की वाणी भी लगातार प्रकाशित की जाती रहेगी.

-भक्तों की वाणी को बाबा श्री के प्रवचन के पहले जगह मिलेगी.

-बाबा अपने शिष्य बाबा ताऊ आनन्द को भी तभी प्रवचन करने की अनुमति देते हैं, जब भक्त बोल चुके हों.
शिष्यों को भक्तों से उपर जगह दी जाये, कम से कम इस आश्रम की यह परंपरा नहीं.


-आश्रम मेनेजमेन्ट

Tuesday, December 8, 2009

पहले वाह वाह और अब भर्तसना..आखिर क्यूँ? : प्रवचन माला

भक्त ने जानना चाहा है कि

बाबा, जो व्यक्ति पहले मेरी वाह करता था, आज वो ही मुझे गाली बक रहा है. मैं संशय में हूँ कि क्या वाह वाह को सच मानूँ या गाली को? कृप्या मुझ अज्ञानी का संशय का निराकरण करें और आशीष देवें.

बाबा का जबाब:

मेरे प्रिय आत्मन


भक्त, तुम्हारी जिज्ञासा का निराकरण इस बोध कथा से हो जायेगा:

एक जमाने में एक चित्रकार होता था.

एक विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने का उसे निमंत्रण प्राप्त हुआ. प्रतियोगिता का विषय था कि विश्व के सबसे निष्कपट, निश्छल एवं मासूम चेहरे का चित्र.

चित्रकार ऐसा चेहरा खोजने निकल पड़ा. शहर, गांव, पहाड़, तराई सब खोजते उसे एक बच्चा दिखाई पड़ा जिसे देख कोई भी सहज कह उठे कि इससे मासूम और निष्कपट तो कोई हो ही नहीं सकता.

उसने उस बच्चे से अपना प्रयोजन बताया और उसका चित्र बनाया.

चित्र ने प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार जीता.

बात आई गई हो गई. दुनिया अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती रही.

लगभग २५ साल बद उसी चित्रकार को फिर एक विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने का निमंत्रण प्राप्त हुआ. इस बार प्रतियोगिता का विषय था कि विश्व के सबसे खूंखार और खौफनाक चेहरे का चित्र.

चित्रकार फिर अपनी खोज पर निकला.

आतंकवादी खेमों से लेकर डकैतों तक के अड्डे तलाश डाले और अंत में एक जेल की काल कोठरी में कई हत्याओं के लिए आजीवन सजा काटते एक व्यक्ति को देख उसे लगा कि उसकी मंजिल उसे मिल गई.

उसने उस कैदी को अपना प्रयोजन बताया और उसका चित्र बनाया.

इस चित्र ने भी प्रथम पुरुस्कार जीता.

लेकिन जब चित्रकार ने चित्र बनाकर पूरा किया था तो उसने पाया कि वो कैदी रो रहा है. उसने उस कैदी से इसकी वजह जाननी चाही.

कैदी ने कहा कि आपने मुझे पहचाना नहीं. मैं वही बालक हूँ जिसका चित्र आज से २५ साल पहले आपने एक मासूम और निष्कपट बालक के रुप में उकेरा था.

कथा का सार यह है कि मन और कर्म स्वतः रुप धर परिलक्षित होते है. ईबारतें तारीखों के साथ कर्म के आधार पर बदल जाती हैं. अपने अपने समय दोनों सत्य थे.


---आशा है जिज्ञासा का निराकरण हुआ होगा---

---खुश रहो भक्त---बाबा का आशीष तो सदैव साथ है.

भविष्य में भी जिज्ञासा निवारण हेतु आश्रम के द्वार हमेशा खुले हैं.

Sunday, December 6, 2009

बाबा ताऊआनंद महाराज प्रवचनमाला -1

बाबाश्री ताऊआनंद महाराज
गुरुदेव के चरणों मे दंडवत करते हुये मैं बाबाश्री ताऊआनंद आपका इस प्रवचनमाला मे हार्दिक स्वागत करता हूं.
प्रिय आत्मन,
सब कुछ पुराना होने से ही बेहतरीन नही हो जाता है और ना नया होने से ही कोई कमतर होता है. समझदार प्राणी दोनो को जांच परखकर ही किसी एक का अनुसरण करता है. जबकि मुर्ख प्राणि दूसरों की देखा देखी अनुसरण करता है. यानि वह भेड चाल से चलता है.
आज के लिये इतना ही.

बाबा श्री ताऊआनंद महाराज आश्रम के मुख्य महंत घोषित

सूचना

प्रिय भक्तों

बाबा समीरानन्द का शुभाषीश!

बहुत हर्ष का विषय है कि आज श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी के खास शिष्य बाबा श्री ताऊआनंद महाराज को आश्रम का मुख्य महंत घोषित किया जाता है. बाबा श्री ताऊआनंद महाराज अपने मेहनत, लगन और आस्था के आधार पर इस महत्वपूर्ण पद को प्राप्त हुए हैं.

श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का उन्कें विशिष्ट स्नेह प्राप्त है.

बाबा श्री ताऊआनंद महाराज अति ज्ञानी हैं. उनका अध्ययन सभी को लाभांवित करेगा, ऐसा श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी की आशा है.

आप सब उनका आशीष लें.


















-जय श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी-

-जय बाबा श्री ताऊआनंद महाराज की-




-आश्रम मेनेजमेन्ट

Friday, December 4, 2009

बाबा जी का आशीर्वाद



अभी श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी के प्रवचन प्रारंभ नहीं हुए है. अभी आप प्रणाम कर आशीर्वाद लें और पुनः पधारें.

-आश्रम मेनेजमेन्ट