बाबा स्वामी ललितानंद महाराजप्रिय भक्तों, आज प्रवचन माला का चौथा दिन है.आपका हार्दिक स्वागत है। भक्तों की उपस्थिति दिनों-दिन बढ़ते रही है. आगे के प्रवचनों में पंडाल का विस्तार किया गया है. सेवा के लिए आश्रम में नए भक्त भी आ रहे हैं ताकि आपको परेशानी मत हो. आप शांति से बैठ कर सद्वचनों का श्रवण करें.आपकी विहंगम उपस्थिति से हम प्रफ़ुल्लित हैं.
उपस्थित सज्जनों और सन्नारियों और प्यारे बच्चा लोगों को आशीर्वाद, कल के शब्द के चिंतन को हम आगे बढ़ाते हैं.हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए. ईश्वर ने हमें वाणी का उपहार सभी प्राणियों की भलाई के लिए दिया है. इसलिए वाणी का उपयोग प्राणियों की भलाई के लिए होना चाहिए. हानि के लिए नहीं. मनुष्य को मितभाषी होना चाहिए. जब जब मनुष्य अधिक बोलेगा तो मर्यादाओं का अतिक्रमण होगा और वह स्वयं ही लोगों का कोप भाजन बन जायेगा. अत: हित भाषण के साथ मित भाषण भी आवश्यक है.
हमारे मनीषियों ने मित भाषण के विषय में बहुत ही मनोहारी वचन कहे है.
सक्तुमिव तितउना पुनन्तो यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत.
अत्र सखाय: सख्यानि जानते भद्रैषाम लक्ष्मीर्निहिताधि वाचि.
जैसे सत्तू को पानी में घोलने से पहले छलनी में छान कर देख लेते हैं कि ऐसी कोई अभक्ष्य वास्तु ना चली जाये जो पेट में विकार पैदा करे. उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति शब्द रूपी आटे को मंत्र रूपी छलनी में छान कर बोलता है.ऐसे लोग ही मित्रता बनाये रखने के नियमो को जानते हैं और मंत्रणा (सोच समझ) कर बोलने वाले पुरुष और स्त्री की वाणी में लक्ष्मी, शोभा और संपत्ति निवास करती है.
जिव्हाया अग्रे मधु में जिव्हा मूले मधुलकं.
हे मनुष्य ईश्वर से प्रार्थना कर कि "मेरी वाणी के अग्र भाग में मधु रहे और जीभ की जड़ अर्थात बुद्धि में मधु का छत्ता रहे. जहाँ मिठास का भंडार भरा रहे.
नीतिकार ने कहा है.रोहति सायकैर्विध्दम छिन्नं रोहति चासिना
वाचो दुरुक्तं विभत्सम न पुरोहति वाकक्षतं.
तीरों का घाव भर जाता है., तलवार से कटा हुआ भी ठीक हो जाता है. किन्तु कठोर वाणी का भयंकर घाव कभी नहीं भरता.
उर्दू शायर ने कहा हैनोके-जुबां से तेरे सीने को छेद डाला
तरकश में है तीर या है जुबां दहन में
किसी अंग्रेजी कवि ने कहा हैSpeak gently! -- it is a little thing
Dropped in the heart's deep well;
The good, the joy, which it may bring,
Eternity shall tell.मधुर भाषण एक छोटी वस्तु है, किन्तु यह ह्रदय के गंभीर कुंए में गिराई जाती है. इसके परिणाम स्वरूप जो सुख और प्रसन्नता प्राप्त होती है उसे समय ही बत्येगा.
एक दुसरे विद्वान् ने भी बड़े ही सुन्दर ढंग से कहा है."These abuses and taunts can be forgiven, but not forgotten"
किसी के अपशब्द और व्यंग्य वचन क्षमा तो किये जा सकते हैं , लेकिन भुलाये नहीं जा सकते.
इसी लिए भक्तों वाणी के महत्व को समझो और इसका सदुपयोग करो,
अधरों पर शब्दों को लिखकर मन के भेद ना खोलो
मैं आँखों से ही सुन सकता हूँ तुम आँखों से ही बोलो
फिर करना निष्पक्ष विवेचन मेरे गुण और दोषों का
पहले अपने मन के कलुष नयन के गंगा जल में धोलो
संबंधों की असिधारा पर चलना बहुत कठिन है
पग धरने से पहले अपने विश्वासों को तोलो
स्नेह रहित जीवन का कोई अर्थ नहीं होता है
मेरे मीत ना बन पाओ तो और किसी के होलो
ये वाणी वाण ह्रदय को छलनी कर देते हैं.
सत्य बहुत तीखा होता है सोच समझ कर बोलो
भक्तों आज अपने ज्ञान की गंगा में स्नान किया, इसका लाभ आपको अवश्य मिलेगा. अब कल का प्रवचन हमारे बड़े महाराज स्वामी ताऊआनंद जी महाराज करेंगे. आप श्रवण दर्शन लाभ प्राप्त करे.
स्वामी ललितानंद जी महाराज आप सभी उपस्थित भक्तों को स्वामी ललितानंद जी महाराज का आशीष।
ये वाणी वाण ह्रदय को छलनी कर देते हैं.
ReplyDeleteसत्य बहुत तीखा होता है सोच समझ कर बोलो
-जय हो महाराज!! ज्ञान चक्षु खुल गये.
बहुत बढ़िया विचार दिये इस प्रवचन नें.
जय हो जय हो!!!
स्वामी ललितानंद जी महाराजji ki जय हो जय हो!!!
ReplyDeleteअनंत की स्पष्टता स्पषट हुई। जय हो जय हो!!!
ReplyDeleteडिस्कलेमर...
ReplyDeleteबाबा बीता कल पीछे छोड़ कर अच्छे काम की ओर बढ़ रहे हैं...लेकिन कोई खामख्वाह ऊंगली तोड़ेगा तो बाबा के कुछ हॉलेट भक्त अब भी साथ हैं...ये गोली पहले चलाते हैं,वजह बाद में पूछते हैं...इसलिए प्रवचन में ध्यान लगाते समय सावधानी बरतने में ही समझदारी है...
जय हिंद...
बाबाजी की जय हो !
ReplyDeleteबाबा महाराज ललितानंद जी की जय हो. बाबाश्री आपके अमृत प्रवचन लोगों के शब्द वाणों से दग्ध हृदय को बहुत शांति प्रदान करते हैं. युं ही आपकी अमृतवाणी अविरल बहती रहे.
ReplyDeleteरामराम.
मीठा मीठा बोल प्राणी २ ( मधुमेह से न डर)
ReplyDeleteये जग है अनमोल, सत्य वचन महाराज
सत्य वचन प्रभु जी...सादर प्रणाम
ReplyDeleteजय हो महाराज ! ज्ञान चक्षु खुल गये !!
ReplyDeleteबाबा आपका प्रवचन सुनना तो कंपल्सरी कर देना चाहिए बहुते जरूरी होता जा रहा है ...कम से कम कुछ तो सदबुद्धि आएगी ...जय हो बाबा की जय हो ...अजी जय जय हो जी जय जय हो
ReplyDeleteये वाणी वाण ह्रदय को छलनी कर देते हैं.....
ReplyDeleteकाहे लिए वाणी को वाण चलाने को उकसाते हैं .....एक दम सही बोले हैं कि भक्तों की वाणी मधुर होनी चाहिए ...मधुर ही होती होगी अगर बगुला भगत नहीं हुए तो ....मर्यादाओं का अतिक्रमण होता है तो वाणी की कठोरता पर कोई नियंत्रण पाना भी मुश्किल होता है ...जिसने वाणी का महत्व समझ लिया ...उसका जग में कोई शत्रु नहीं रहा ...मितभाषी होने की सलाह किसी और दिन ग्रहण कर लेंगे ...आज तो मधुर वाणी से ही काम चला लेते हैं ...
धन्य हुए प्रभु आपके श्री मुख से वाणी पुराण सुन कर ....बहुत कृपा है आपकी ...बनाये रखिये ....
माँ अदाम्बिके ...!! कुछ तो अपने श्रीमुख से भी मधुर वाणीयुक्त वचन कहें ...आपकी भक्तिन कब से आपके संदेशों की प्रतीक्षा में धुनी रमाये बैठी है ...!!