Thursday, December 10, 2009

स्वामी ललितानंद महाराज प्रवचनमाला भाग - 1



प्रिय भक्तों,
हमारे इस प्रथम प्रवचन मे आपका हार्दिक स्वागत है। आपकी विहंगम उपस्थिति से हम प्रफ़ुल्लित हैं. आज  समस्त चराचर जगत दुख से परेशान हो रहा है.चारों तरफ़ हाहाकार मचा हुआ है। कोई किसी की टांग के पीछे पड़ा है कोई किसी के कान के पीछे पड़ा है, हम साक्षी भाव से घटित को देख रहे है और चिंतन कर रहे हैं. आज हम अपने मनीषियों के दिए ज्ञान के पंथ से विमुख हो कर नित नये दुखों से त्रस्त हैं, हमें अपनी सस्कृति के प्रति रूचि होगी तो ज्ञान होगा, ज्ञान होगा तो मंगल होगा, ध्यान होगा तो भक्ति का उदय होगा, भक्ति से आनंद  का उदय होगा. जिस आनंद से आज हम वंचित है वह हमें सहज ही प्राप्त होगा, इस लिए हमने चिंतन करके कुछ सद्वचन भक्तों के मार्ग दर्शन के लिए कहे हैं. उस पर अमल करके आप इस चराचर जगत के आनंद को प्राप्त कर सकते हैं.हमारे द्वारा रचित एक कविता सुनिये। और इसपर मनन करके परम शांति को प्राप्त होईये।
"जउ सुख कउ चाहे सदा, सरनी राम की लेह 
कहू  नानक  सुन  रे मना, दुर्लभ मानुष देह"

मनन शील होंने पर ही प्राणी सदा मनुष्य कहलाता है
नित चिंतन करने से ही सदा राह प्रभु की पाता है॥

सोने से पहले सोचो जरा, क्या प्यारे प्रभु को याद किया
चुगली, निंदा, बुरे कर्म में कितना समय बरबाद किया

अपने वचन कर्म से आज समाज का कितना हित किया 
तुच्छ लाभ पाने हेतु गरीब को, हक से वंचित नही किया 

मैंने कितना निर्माण किया, कितना किसको उजाड़ दिया 
इर्ष्या, जलन, द्वेष डाह से युक्त, कितना किसका बिगाड़ किया 

अच्छे बुरे की पहचान करने में कहीं भूल तो नहीं हुई 
मेरे कारण किसी प्राणी की आज जन तो नहीं गई


मेरी वाणी स्वभाव बर्ताव से कोई दुखी तो नहीं हुआ
कोई पीड़ित खिन्न या त्रस्त तो मुझसे  नहीं हुआ


क्या सामाजिक न्याय और शोषण में मै भी भागीदार बना
शोषण का शिकार हुआ या उसका प्रतिकार किया घना


जीवन में दुःख का कारण जानने आत्म निरिक्षण स्वयं ही करें
क्रिया व्यवहार और वाणी में दोषों को पकड़ें और स्वयं ही दूर करें


नित यह चिंतन करके देखो बढ़ी दूरियां कैसे घटती हैं
कैसे घटता कटुतापन निराशा कैसे संबंधों की बेली बढ़ती है


ध्यान रहे! प्रत्येक कार्य में ईश्वर का नित स्मरण रहे
फिर जीवन हो जाये नंदनवन, क्यों दुःख का आभरण रहे


स्वामी ललितानंद जी महाराज

  
आप सभी उपस्थित भक्तों को  स्वामी ललितानंद जी महाराज का आशीष ।

  



17 comments:

  1. ज्ञानचक्षु खोल दिये आपने. आश्रम से ऐसे प्रवचनों की ही उम्मीद है. स्वामी ललितानंद जी महाराज की जय!!

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  2. ललितानंद जी महाराज की जय!

    बी एस पाबला

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  3. प्रातः काल के प्रवचन से धन्य हुआ प्रभु। सांध्य काल के आशीर्वचन की प्रतीक्षा में दिन कट जाए...आशीष दें। जय हो।

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  4. प्रभु आपके अमृत वचन कानों मे पडते ही दग्ध हृदय को परमशांति प्राप्त हुई. प्रवचन जारी रहें.

    रामराम.

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  5. महाराज पाय लागी, जब से आपने भेष धारण (सन्यास दीक्षा)किया है उसके बाद आज दर्शन पाया हुँ, कृतार्थ हो गया, कभी पुन: घर पर आकर चरण रखिएगा,

    आपका जुड़वाँ अनुज
    ललित

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  6. महंत श्री श्री १०००००००००००००००००००८ स्वामी ललितानंदजी को शाष्टांग प्रणाम. आपके मुखारविंद से नित नए प्रवचन की गंगा बहती रहे. धर्म की रक्षा हो अधर्म का नाश हो प्राणियों में सद्भावना हो विश्व का कल्याण हो...........हर हर महादेव.

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  7. आपने तो सुप्तावस्था में पड़े हुए ज्ञानचक्षु खोल दिए प्रभु ...सहस्त्र कोटि धन्यवाद आपका

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  8. प्रणाम गुरुदेव !
    आपने पहले ही प्रवचन में ज्ञान चक्षु खोल दिए है | जय हो आपकी | आगे भी एसा ही अमृत बरसाते रहें |

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  9. सेवामें
    श्रीमान आश्रम के महा प्रबन्धक जी
    आश्रम की बगल पट्टी में फोलोवर के स्थान पर " अनन्य भक्तगण " या एसा ही कोई नाम दिया जाए |
    सादर |

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  10. बहुत सुन्दर पोस्ट।आभार।

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  11. मेरी आज की पोस्ट आप्को ही समर्पित बाबा जी पहले पढा होता आप्को तो पोस्ट मे ही ये लिख देती। शुभकामनायें

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  12. dhnya ho maharaj !

    aap jaise param gyaani babaon ki badi zaroorat hai desh ko........

    kuchh prasaad varsaad ?

    kaahe ka bhog lagaayenge prabhu ?

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  13. जय लातिकानंद जी .. कितना निर्माण किया कितना विध्वंश किया ..... बरोबर महाराज जी

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  14. महाराज जिस तरह का ताम-झाम यहाँ दिख रहा है, आप तो लगता है हिन्दुस्तान के सारे बाबाओं का मार्केट शेयर खींच लायेंगे.
    जय हो....!!!!!

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  15. ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
    ब्लोग चर्चा मुन्नभाई की
    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
    स्वामी ललितानंद जी महाराज की जय!!
    वैसे महाराज जी भक्तो के लिए थोडा योगा-व्योगा की तरफ़ भी
    ध्यान दे.
    महावीर बी. सेमलानी "भारती"
    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

    यह पढने के लिऎ यहा चटका लगाऎ
    भाई वो बोल रयेला है…अरे सत्यानाशी ताऊ..मैने तेरा क्या बिगाडा था

    हे प्रभु यह तेरापन्थ

    मुम्बई-टाईगर

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  16. आपके परोपकारी प्रवचन पाकर हम कृतार्थ हुए गुरुवर।

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