प्रिय आत्मन,
हमने पिछले सत्रों में आपके काफ़ी प्रश्नों के उत्तार दिये हैं. जैसा कि आपको मालूम है हम व्यक्तिगत प्रश्नों के जवाब नही दिया करते. सिर्फ़ लोक हित कारी ऐसे प्रश्नों को ही शामिल करते हैं जो अधिकतम लोगों के लिये हितकारी हों.
प्रश्न :-
एक प्रश्न पुन: परम भक्त श्री ललित शर्मा, का आया है. वो पूछते हैं बाबाश्री आजकल सपनों के बारे मे काफ़ी बातचीत हो रही है. आपके इस विषय में क्या विचार हैं?
उत्तर :-
भक्त जनों, हम आपसे एक प्रतिप्रश्न पूछना चाहेंगे. क्या आप सपने और जागरण का फ़र्क समझते हैं? आप कहेंगे, ये कैसी बाते करते हैं महाराज श्री?
तो भक्त असली उत्तर यहीं पर है आपके प्रश्न का. असल मे साधारण तौर पर देखा जाये तो स्वप्न हमें सोने की अवस्था मे आते हैं. और जागने पर टूट जाते हैं. इसका विश्लेषण आजकल "नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे" श्रंखला में श्री अनुराग शर्मा जी विशद रुप से कर रहे हैं. जहां हमारे वैज्ञानिक मानस के श्री अरविंद मिश्र जी एवम अन्य भक्त गण काफ़ी चर्चा रत हैं. और वहां चर्चा काफ़ी अच्छी चल रही है.
पर भक्त गणों हम आपकी बात से सहमत नही हैं. यानि हमारा कहना ये है कि आप लोग सोते में ही सपना नही देखते बल्कि जागरण की अवस्था मे भी यही काम करते हो. हमारा कहने का अभिप्राय यह है कि आप के सोने और जागने में कोई फ़र्क नही है.
आप सोते में तो सपना देखते ही हो. और जागने में क्या करते हो?
अभी आप यहां सतसंग में बैठे हुये हमारे प्रवचन सुन रहे हैं. परंतु क्या आप यहां समग्र रुप से हैं? नही हैं ना? क्योंकि आपका शरीर तो यहां बैठा सुन रहा है परंतु आपका मन इस समय कहीं और है. आप सोच रहे होंगे...ये बाबाजी भी कहां लेक्चर देने लगे...अभी घर जाना था...घरवाली ने सामान लाने का कहा था...फ़िर पिक्चर जाना था...यानि आपका शरीर यहां और मन कहां? दुसरी जगह है ना...आप मन से यहांबैठे बैठे..दिल्ली, कोलकाता, जर्मनी इंगलैंड, कनाडा हिमालय...यानि कहीं भी हो सकते हैं..
तो ये हुआ आपके जागरण का हाल..यानि आप जागरण मे भी सपने ही देख रहे हो. अब आईये देखें कि नींद में क्या होता है?
नींद मे आपका शरीर तो मान लिजिये दिल्ली मे सोया है पर आप का मन सपने में पहुंच गया..हिमालय, सियाचिन ब्लागर शिविर...या कनाडा, जर्मनी, जापान कहीं भी...और इसको ही आप सपना कहते हैं.
तो क्या फ़र्क हुआ आपके जागने या सोने में? आप तो दोनों ही अवस्थाओं मे स्वप्न का आनंद ले रहे हैं. यानि आपका सोना जागना एक सरीखा हुआ.
सिर्फ़ यहां आपको नींद मे यह पता नही चलता कि आप सपना देख रहे हैं, बल्कि वो आपको हकीकत लगता है. और जागने में आपको यह लगता है कि आप जाग रहे हैं... सपने में आप एक चार फ़िट की गली में ५ फ़ुट चौडी कार दौडा कर जा सकते हैं जबकि जागरण में ऐसा संभव नही है. सपने में आप हवा में उड सकते है, पर जागरण में नही.
इसका एक बारीक भेद है जो हम आपको आगामी कडियों में बतायेंगे. और इस भेद को हमारे विशेष और असली शिष्य ही पकड पायेंगे. जिनको मजे लेना है वो तो जागरण में भी स्वप्न ही देखते रह जायेंगे. और हमारे असली शिष्य इस भेद को समझेंगे. जो हम आगामी प्रवचनों में समझायेंगे.
तो भक्तगणों अब आप थोडे समय के लिये कीर्तन में शामिल हॊं, उसके बाद शयन के लिये प्रस्थान करें, कल सुबह ३:०० बजे के सत्र में पधारना ना भुलें.
सांसारिक बातों को यहां छोडे, यहां आश्रम के माहोल मे थोडा अपना परलोक सुधार लें, शंका कुशंका की यहां कोई गुंजाईश नही है. हम संत लोग हैं, अपनी मर्जी के मालिक हैं. हम आपकी मर्जी से नही चलेंगे.
संतो का काम तो असली शांति की शिक्षा देना है. जो हम दे रहे हैं, लेना ना लेना आपके हाथ है. परमात्मा के यहां से तो रोज अमृत बरस ही रहा है. आप चाहे तो अपने घडे का मूंह सीधा करके उसको भर लें और चाहें तो घडे का मूंह टेढा करले. वो खाली रह जायेगा इसमे परमात्मा या बाबा लोगों का क्या कसूर?
अब आज के लिये इतना ही. आपका शुभ हो...कल्याण हो!