Wednesday, February 17, 2010

स्वप्न का रहस्य खोला बाबा ताऊआनंद महाराज ने.

बाबा ताऊआनंद प्रवचनमाला भाग - 5


बाबा समीरानंद जी महाराज और बाबा ताऊआनंद महाराज प्रवचन स्थल की और प्रस्थान करते हुये!


प्रिय आत्मन,

हमने पिछले सत्रों में आपके काफ़ी प्रश्नों के उत्तार दिये हैं. जैसा कि आपको मालूम है हम व्यक्तिगत प्रश्नों के जवाब नही दिया करते. सिर्फ़ लोक हित कारी ऐसे प्रश्नों को ही शामिल करते हैं जो अधिकतम लोगों के लिये हितकारी हों.

प्रश्न :-

एक प्रश्न पुन: परम भक्त श्री ललित शर्मा, का आया है. वो पूछते हैं बाबाश्री आजकल सपनों के बारे मे काफ़ी बातचीत हो रही है. आपके इस विषय में क्या विचार हैं?

उत्तर :-

भक्त जनों, हम आपसे एक प्रतिप्रश्न पूछना चाहेंगे. क्या आप सपने और जागरण का फ़र्क समझते हैं? आप कहेंगे, ये कैसी बाते करते हैं महाराज श्री?

तो भक्त असली उत्तर यहीं पर है आपके प्रश्न का. असल मे साधारण तौर पर देखा जाये तो स्वप्न हमें सोने की अवस्था मे आते हैं. और जागने पर टूट जाते हैं. इसका विश्लेषण आजकल "नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे" श्रंखला में श्री अनुराग शर्मा जी विशद रुप से कर रहे हैं. जहां हमारे वैज्ञानिक मानस के श्री अरविंद मिश्र जी एवम अन्य भक्त गण काफ़ी चर्चा रत हैं. और वहां चर्चा काफ़ी अच्छी चल रही है.

पर भक्त गणों हम आपकी बात से सहमत नही हैं. यानि हमारा कहना ये है कि आप लोग सोते में ही सपना नही देखते बल्कि जागरण की अवस्था मे भी यही काम करते हो. हमारा कहने का अभिप्राय यह है कि आप के सोने और जागने में कोई फ़र्क नही है.

आप सोते में तो सपना देखते ही हो. और जागने में क्या करते हो?

अभी आप यहां सतसंग में बैठे हुये हमारे प्रवचन सुन रहे हैं. परंतु क्या आप यहां समग्र रुप से हैं? नही हैं ना? क्योंकि आपका शरीर तो यहां बैठा सुन रहा है परंतु आपका मन इस समय कहीं और है. आप सोच रहे होंगे...ये बाबाजी भी कहां लेक्चर देने लगे...अभी घर जाना था...घरवाली ने सामान लाने का कहा था...फ़िर पिक्चर जाना था...यानि आपका शरीर यहां और मन कहां? दुसरी जगह है ना...आप मन से यहांबैठे बैठे..दिल्ली, कोलकाता, जर्मनी इंगलैंड, कनाडा हिमालय...यानि कहीं भी हो सकते हैं..

तो ये हुआ आपके जागरण का हाल..यानि आप जागरण मे भी सपने ही देख रहे हो. अब आईये देखें कि नींद में क्या होता है?

नींद मे आपका शरीर तो मान लिजिये दिल्ली मे सोया है पर आप का मन सपने में पहुंच गया..हिमालय, सियाचिन ब्लागर शिविर...या कनाडा, जर्मनी, जापान कहीं भी...और इसको ही आप सपना कहते हैं.

तो क्या फ़र्क हुआ आपके जागने या सोने में? आप तो दोनों ही अवस्थाओं मे स्वप्न का आनंद ले रहे हैं. यानि आपका सोना जागना एक सरीखा हुआ.

सिर्फ़ यहां आपको नींद मे यह पता नही चलता कि आप सपना देख रहे हैं, बल्कि वो आपको हकीकत लगता है. और जागने में आपको यह लगता है कि आप जाग रहे हैं... सपने में आप एक चार फ़िट की गली में ५ फ़ुट चौडी कार दौडा कर जा सकते हैं जबकि जागरण में ऐसा संभव नही है. सपने में आप हवा में उड सकते है, पर जागरण में नही.

इसका एक बारीक भेद है जो हम आपको आगामी कडियों में बतायेंगे. और इस भेद को हमारे विशेष और असली शिष्य ही पकड पायेंगे. जिनको मजे लेना है वो तो जागरण में भी स्वप्न ही देखते रह जायेंगे. और हमारे असली शिष्य इस भेद को समझेंगे. जो हम आगामी प्रवचनों में समझायेंगे.

तो भक्तगणों अब आप थोडे समय के लिये कीर्तन में शामिल हॊं, उसके बाद शयन के लिये प्रस्थान करें, कल सुबह ३:०० बजे के सत्र में पधारना ना भुलें.

सांसारिक बातों को यहां छोडे, यहां आश्रम के माहोल मे थोडा अपना परलोक सुधार लें, शंका कुशंका की यहां कोई गुंजाईश नही है. हम संत लोग हैं, अपनी मर्जी के मालिक हैं. हम आपकी मर्जी से नही चलेंगे.

संतो का काम तो असली शांति की शिक्षा देना है. जो हम दे रहे हैं, लेना ना लेना आपके हाथ है. परमात्मा के यहां से तो रोज अमृत बरस ही रहा है. आप चाहे तो अपने घडे का मूंह सीधा करके उसको भर लें और चाहें तो घडे का मूंह टेढा करले. वो खाली रह जायेगा इसमे परमात्मा या बाबा लोगों का क्या कसूर?

अब आज के लिये इतना ही. आपका शुभ हो...कल्याण हो!

Wednesday, February 10, 2010

दूसरों की मौज लेने से खुद के चेले और बच्चे बिगड जाते हैं : बाबा ताऊआनंद

बाबा ताऊआनंद प्रवचनमाला भाग - 5



प्रिय आत्मन,

जैसा कि आप जानते हैं कि हमने आजकल कुछ भी बोलना छोड दिया है. आज के समय मे किसी को कुछ समझाना " भैंस के आगे बीन" बजाने जैसा है. सो बेहतर यही है कि अपनी बीन ना बजाई जाये. और वैसे भी हम आजकल निजी प्रश्नों के उत्तर नही देते है. सिर्फ़ लोकहितकारी प्रश्न ही प्रश्नोत्तरी सभा में लिये जाते हैं.

भक्तों से मुक्त हस्त दान देने की अपील करते हुये बाबाश्री ताऊआनंद महाराज...
बांयी तरफ़ विराजमान हैं..बडे महाराज श्री श्री १००८ समीरानंद नंद जी महाराज
और दांयी तरफ़ विराजमान हैं अर्थ-प्रबंधक बाबा स्वामी महफूज़ानंद जी महाराज


हमारे परम भक्त ललित शर्मा ने एक बहुत ही सुंदर प्रश्न किया था जिसको लोकहित मे जानकर हम यहां जवाब दे रहे हैं. उन्होने पूछा है कि बाबाश्री, आज कल के बालक बहुत ही उदंडता करते हैं ऐसा क्यों?

बाबा श्री का जवाब : प्रिय भक्तगणों, अक्सर देखा गया है कि आजकल बच्चे या मातहत उदंडता करते हैं. और शायद आपको पता भी नही चलता हो कि इसके लिये आप स्वयम दोषी हो सकते हैं. आप पूछेंगे कि यह तो आप उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत लागू कर रहे हैं.

तो भक्तो, आपने एक कहानी सुनी होगी कि - एक राजा अपने लाव लश्कर के साथ यात्रा पर था. एक जगह पडाव डाला गया. भोजन सामग्री में थोडा सा नमक कम पड गया. तो पास के ही गांव से नमक लाने की व्यवस्था करने को कहा गया. और नमक लाने जब आदमी जा रहा था तब राजा ने उसे हिदायत देते हुये कहा कि - देखना जिससे भी नमक लो उसको नमक की कीमत अवश्य अदा करना.

वो आदमी बोला - महाराज, नमक की क्या कीमत होती है? राजा से नमक की कीमत लेते भी लोगों को शर्म लगेगी.

राजा ने कहा - जो राजा बिना कीमत की नमक जैसी छोटी वस्तु गांव वालों से मुफ़्त लेता हैं उसके मातहत सारे गांव को लूट कर खा जाते हैं. और गांव को बर्बाद कर देते हैं. और जो पिता अपने बच्चों के सामने दूसरों की मौज लेता है...दूसरों की बेइज्जती करता है उसके बच्चे भी ऐसा ही करते हैं. क्योंकि वो अपने पिता के चरण चिन्हों पर चलते हैं.

वो आदमी बोला - महाराज आप सही कह रहे हैं. पर ऐसा होता क्यों है?

राजा बोला - पिता, गुरु ये बडे होते हैं. ये जब किसी की मौज लेते हैं तो सामने वाला इनके रुतबे के सामने इनकी बातों का बुरा नही मानता बल्कि प्रसन्न होता है. पर जब इन गुरुओं के बच्चे और चेले चपाटी उन्ही की तर्ज पर बुजुर्गों की मौज लेने लगते हैं तो यह नाकाबिले बर्दाश्त होजाता है. जो बडे बडे मतभेद खडे करवा देते हैं. और पिता और गुरु भी बेटे और चेलों के मोहवश होकर उनको डांट कर समझाने के बजाये उनको प्रोत्साहन देते हैं. तब यह और भी घातक होता है.

तो भक्त गणों आप समझ ही गये होंगे कि बुजुर्गों को मौज लेने के पहले अपने चेले चपाटियों को समझा देना चाहिये कि मौज लेते समय पद की गरिमा और अपनी औकात का ध्यान रखा जाना चाहिये. और बच्चों को बच्चे जैसे ही रहना चाहिये , जबरन बुजुर्गियत का जामा ओढने से उल्टे उनकी खिल्ली ही उडती है.

बच्चे अगर बुजुर्गों जैसी हरकत करें तो हंसी के पात्र ही बनते हैं. भले वो खुद को ज्यादा समझदार समझते हों. दुनियां जानती है कि बच्चे की समझ क्या है?

और बुजुर्ग भी मौज लेने का ध्यान रखें तो बेहतर है. कम से कम अपने बच्चों और चेले चपाटियों में ये संस्कार नही डाले तो बढिया है. ईश्वर अतृप्त लोगों की आत्मा को शांति प्रदान करें...हे ईश्वर इन कुत्सित दिमाग के लोगों में शांति से रहने की भावना भर दो.

अब इन कुत्सित और विघ्न संतोषियों की आत्मशांति के कीर्तन के बाद सब लोग विश्राम के लिये प्रस्थान करेंगे...सुबह का सत्र तीन बजे से शुरु होगा. समय पर पहुंचने का ध्यान रखें क्योंकि कल इन कुत्सित दिमागों के शुद्धिकरण के लिए हवन पूजन होगा.

तो भक्त गणों अब हम थोडे समय के लिये मौन व्रत लेरहे हैं.

अब आज के लिये इतना ही. आपका शुभ हो...कल्याण हो!

Tuesday, January 19, 2010

’ मौज लेने वालों के सर्वनाश का इतिहास: संभल जाओ’

बाबा ताऊआनंद प्रवचनमाला भाग - 5


प्रिय आत्मन,

पिछले प्रश्नोतर के सत्र मे हमने परम भक्त ललित शर्मा के प्रश्न का उत्तर देने का वादा किया था. तदनुसार हम आपको वह प्रसंग बताते हैं कि किस तरह अमर्यादित मौज लेने का परिणाम अत्यंत विनाश की प्राप्ति रहा है.

कीर्तन करते भक्तगण और प्रवचनरत बाबा ताऊआनंद महाराज


परम भक्त ललित शर्मा ने प्रश्न किया था कि - आजकल मौज के नाम बहुत कुछ चल रहा है. क्या आप इस मौज लेने पर कुछ प्रकाश डालेंगे. हे बाबा शिरोमणी, इस मौज शब्द ने ब्लागजगत मे तहलका मचा रखा है, चारों तरफ़ अशांति छा गई है.

बाबाश्री ताऊआनंद का उत्तर -

भक्त गणों, आज ललित जी ने बहुत ही कल्याण कारी प्रश्न किया है. अत: हम इसको एक उदाहरण के माध्यम से विस्तार से समझाना चाहेंगे. जिससे आप अवश्य लाभ उठायेंगे ऐसी हमारी इच्छा है. पर आप करोगे तो वही जो आपकी इच्छा है.

मर्यादित मौज और अमर्यादित मौज मे जमीन आसामान का फ़र्क है. मर्यादित मौज के किस्से आप गुरुदेव रविंद्र नाथ टेगोर और महात्मा गांधी की चुहुलबाजी मे पायेंगे. ये प्रवचन हमने पहले भी दिये हैं आप उन्हे पढ कर मर्यादित मौज के बारे मे जान सकते हैं कि वो किस प्रकार एक स्वस्थ हास्य को जन्म देती है.

अब अमर्यादित मौज के बारे मे बताते हैं. और अमर्यादित मौज हमेशा ही बचपने मे होती है. पर इसका खामियाजा तो बडे बडे साम्राज्यों ने अपने खात्मे के रुप मे भुगता है. शायद आपने आज तक ध्यान ना दिया हो. पर हम आज आपको बताते हैं कि इस मौज के चक्कर मे किस तरह यदुवंश जैसे महाप्रतापी साम्राज्य का अंत कर दिया? ये वही यदुवंश था जिसको भगवान श्रीकृष्ण ने इतना शक्तिशाली बना दिया था कि जिसकी सहायता के बिना महाभारत का युद्ध भी नही लडा जा सका. खैर वो अलग प्रसंग है जो हम उचित अवसर आपको अवश्य बतायेंगे. अभी तो मौज लेने की बात चल रही है कि किस तरह से मौज लेने से महाविनाश हुये हैं.

तो भक्त गणों, हम उस समय की बात कर रहे हैं जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुये करीब ३६ साल का समय हो चुका था। श्रीकृष्ण द्वारका पर इस समय राज्य कर रहे थे. उनके सुशासन मे सभी यादव राजकुमार असीम सुख पूर्वक भोग विलासों मे जीवन व्यतीत कर रहे थे. निरंतर भोग विलासों से उन राजकुमारों का शील और संयम कम हो चुका था.

भक्त गणों, जैसा कि आप जानते ही हैं कि जब इंसान को भरपेट भोजन और ऐश्वर्य मिलने लगता है तो उसकी मौज लेने की अभिलाषा अति उत्कट हो जाती है. आस पास वैसे ही चमचों और चेलों का जमावडा शुरु होजाता है. चेले चमचों को भी बिना किसी प्रयास के राजकुमारों की संगत मे भोग विलास और मौज लेने के आनंद की आदत पड जाती है. यानि चमचे भी "फ़ोकट का चंदन घिस मेरे नंदन" वाली कहावत चरितार्थ करने लग जाते हैं. यानि ये वो समय होता है जब दो कौडी के चमचे-चेले भी अपने आपको सर्वोपरि समझने लगते हैं. और यहीं से विनाश के बीज बोये जाते हैं.

तो इसी तरह भोग विलास और मौज लेते हुये सभी राजकुमारों और उनके चेले चमचों की जिंदगी बडे ऐशोआराम मे कट रही थी. हालत यहां तक आ पहुंची की उनको उम्र में अपने से छोटे बडे और उनकी पद मर्यादा का ख्याल भी जाता रहा. वो किसी की भी मौज लेने मे उम्र का लिहाज भी नही देखते थे.

भक्तगणों एक रोज कुछ सिद्ध तपस्वी महात्माओं का दल द्वारका आया. और वहां एक जगह ठहर गया. इन्ही यादव राजकुमारों और उनके चमचों को जब खबर लगी तो ये सारे मौज लेने की नीयत से वहां पहुंच गये. और उन महात्माओं की मौज लेने की युक्ति सोचने लगे. उन दुष्ट चेले चमचों ने उम्र और पद का भी लिहाज नही किया.

भक्तगणों फ़िर उन्होनें राजकुमार साम्ब को स्त्री के कपडे पहनाये और उसके पेट पर कपडे बांध कर उसको इन महात्माओं के सामने ले गये और पूछने लगे - हे महात्मा लोगों आप तो त्रिकाल दर्शी हैं. बताईये इस औरत को लडका होगा या लड्की?

महात्माओं को इस तरह अपनी मौज लिये जाना अच्छा नही लगा और वो क्रुद्ध होगये. और उन्होने कहा कि - अरे मंद बुद्धि और मौज मे उन्मत दुष्टों, इसको ना तो लडका होगा और ना ही लडकी होगी. इसको तो मूसल पैदा होगा और वही मूसल तुम्हारे कुल के विनाश का कारण बनेगा.

और इस प्रकार वो महात्मा उनको श्राप देकर चले गये और इन लोगों मे अब पश्चाताप होने लगा कि ये क्या कर बैठे? गलत लोगों की मौज लेली अबकी बार? आज तक तो जिसकी भी मौज ली वो चुपचाप जलील होकर चला जाता था पर अबकी बार दुर्भाग्य से शेर को सवा सेर मिल गया.

आगे की कहानी तो आपको मालूम ही होगी कि किस प्रकार कालांतर मे समय आने से राजकुमार साम्ब को मूसल पैदा हुआ और उसी के कारण ये सब विनाश को प्राप्त हुये.

तो भक्तगणों मौज लेने से बचा जाना चाहिये. पर जिन्होने मौज ले ली है और महात्माओं का श्राप लेलिया है उनकी रक्षा कौन कर सकता है?

अब और कोई प्रश्न देना चाहे तो प्रश्न लिखी पर्ची हमारे वालंटियर्स को दे सकते हैं. आपका नंबर आने पर हम आपके प्रश्न का जवाब अवश्य देंगे.

अगर आपकी कोई अतिविकट समस्या हो तो बडे महाराज श्री यानि श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी से अग्रिम अपाईंटमैंट लेकर ही मिलने की व्यवस्था हो पायेगी. बडे महाराज श्री बिना अग्रिम अपाईंटमैंट के किसी भी हालत मे नही मिल सकेंगे. बडे महाराज श्री के अपाईंटमैंट के लिये आप बाबा स्वामी ललितानंद महाराज जी से संपर्क स्थापित करें.

भक्तों अब आप हमारे साथ थोडी देर कीर्तन मे शामिल होकर अपने अपने शयन स्थल तक प्रस्थान करेंगे. शयन स्थल की व्यवस्था बाबा स्वामी रामकृष्णानन्द महाराज देख रहे हैं अत: कुछ असुविधा हो तो उनसे संपर्क करें और आनंद पूर्वक इस कुंभ नगरी की मनोरम छटा का आनंद लेवें.

अब आज के लिये इतना ही. आपका शुभ हो...कल्याण हो!

Monday, January 18, 2010

स्वामी रामकृष्णानन्द महाराज जी आश्रम के प्रबंधक-आश्रम व्यवस्था घोषित

सूचना

प्रिय भक्तों

बाबा समीरानन्द का शुभाषीश!

बहुत हर्ष का विषय है कि आज श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी के शिष्य बाबा स्वामी रामकृष्णानन्द महाराज जी को बाबा समीरानन्द आश्रम का प्रबंधक-आश्रम व्यवस्था घोषित किया जाता है. बाबा स्वामी रामकृष्णानन्द महाराज जी को कमरा आरक्षण का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा जा रहा है.


बाबा स्वामी रामकृष्णानन्द महाराज जी अपने ज्ञान, लगन, प्रबंधकीय अनुभव और आस्था के आधार पर इस महत्वपूर्ण पद को प्राप्त हुए हैं.

श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का उन्हें विशिष्ट स्नेह प्राप्त है.

बाबा स्वामी रामकृष्णानन्द महाराज जी अति अनुभवी एवं ज्ञानी हैं. उनका अध्ययन एवं प्रबंधकीय अनुभव सभी को लाभांवित करेगा, ऐसा श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी का विश्वास है.

आप सब उनका स्नेह एवं आशीष प्राप्त करें.






-जय श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी की-
-जय बाबा श्री ताऊआनंद महाराज की-
-जय बाबा स्वामी ललितानंद महाराज जी की-
-जय मां अदा चैतन्य कीर्ति महाराज साहिबा जी की-
-जय बाबा स्वामी महफूज़ानंद महाराज जी की-
-जय बाबा स्वामी रामकृष्णानन्द महाराज जी की-




-आश्रम मेनेजमेन्ट

Sunday, January 17, 2010

कुंभ शिविर से बाबा ताऊआनंद के प्रवचन

बाबा ताऊआनंद प्रवचनमाला भाग - 4


प्रिय आत्मन,

आजकल हमारे कुंभ मेला आश्रम मे दिन रात अखंड प्रवचन जारी हैं. आप लोगों की कुछ जिज्ञासाएं आती हैं उन सबका निजी रुप से जवाब देना अभी तो मुमकिन नही है. पर कुछ ऐसे प्रश्नों के उत्तर हम यहां देने की कोशीश करेंगे जिनको ज्यादातर भक्तों ने पूछा है.

बाबा ताऊआनंद कुंभ शिविर में प्रश्नोतरी सभा में


एक भक्त प्रश्न है -

बाबाश्री, मेरा मन संसार से ऊब गया है. अब घर बार, बीबी बच्चों का परित्याग करके आपकी शिष्यता ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त करना चाहता हूं.

बाबाश्री ताऊआनंद का उत्तर -

भक्त गणों, मोक्ष की धारणा ही गलत है. आप बीबी बच्चों को त्याग कर कौन सा मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं? अगर आपने परिवार का त्याग करके कहीं मठ और आश्रम में जायेंगे तो वहां पर संसार खडा कर लेंगे. संसार तो आपके मन मे हैं. जब तक आपका मन मौजूद है तब तक संसार रहेगा.

अब देखिये ना, आप ब्लागिंग करने लगे. गोद-यंत्र (लेपटोप) को गोद मे रखे हुये आप नितांत अकेले हैं. आपके कमरे मे कोई नही है. इस समय आपकी पत्नि आपसे कुछ कहना चाहती है तो आपको लगता है कि ये सुपरणखां कहां से आगई? विघ्न डाल रही है आपकी तपस्या में. अगर बच्चे आजाये और आपसे कुछ कहना चाहे तो आप की इच्छा उनको थपडिया देने की होती है. और बाज वक्त आप ऐसा कर भी बैठते हों तो हमें कोई आश्चर्य नही होगा.

दूसरी स्थिति देखिये - आप जब ब्लागिंग कर रहे हैं तब नितांत अकेले हैं. तो आपके हिसाब से मोक्ष प्राप्त करने का सुनहरी अवसर है. यानि आप सब कुछ छोड चुके हैं. आप कहीं आपके खिलाफ़ कोई पोस्ट या कमेंट देखते हैं तो क्या होता है?

बस आप शुरु होगये. मन ही मन ५० गालियां दे डाली, और गोदयंत्र पर खटाखट उसके खिलाफ़ कुंठित या लुंठित कमेंट कर डाला. अब बताईये ..कहां गया आपका एकांकीपन? आप तो अकेले थे ना? फ़िर कहां से यह सब खुराफ़ात शुरु हुई?

ये सारी खुराफ़ात शुरु हुई आपके मन से. तो भक्त गणों, कुछ छोडने या पकडने की आवश्यकता नही है. संसार आपके मन मे है. अगर आपको सच मे कुछ छोडना ही है तो अपने मन की गांठ छोडिये. हमारे प्रवचन ध्यान से सुनिये उन पर गौर करिये, फ़िर जब आपकी उत्तम स्थिति दिखेगी तब हम आपको मन पर नियंत्रण की विधी समझायेंगे.

अब और कोई प्रश्न देना चाहे तो दे सकते हैं.

( एक भक्त खडा होकर सवाल पूछना चाहता है)

भक्त - बाबाश्री, आपने बहुत ही सुंदर शंका समाधान किया है. आपने ब्लागजगत का उदाहरण देकर बडे ही रोचक तरीके से समझाया है जो सीधे दिमाग मे फ़िट होगया है. बाबाश्री मैं एक शंका का समाधान चाहता हूं.

बाबाश्री ताऊआनंद - भक्त, सर्वप्रथम तो अपना नाम बताओ तदुपरांत अपना प्रश्न प्रस्तुत करो. तुम्हारी जिज्ञासा हम अवश्य शांत करेंगे.

भक्त - बाबाश्री, मेरा नाम ललित शर्मा है. मुझे यह पूछना है कि आजकल मौज के नाम बहुत कुछ चल रहा है. क्या आप इस मौज लेने पर कुछ प्रकाश डालेंगे. हे बाबा शिरोमणी, इस मौज शब्द ने ब्लागजगत मे तहलका मचा रखा है, चारों तरफ़ अशांति छा गई है. मेरा मन बहुत ही व्यथित है. वो तो आपका आजका प्रवचन सुनकर मुझे समझ आगया वर्ना मैं तो स्वयम टंकी पर चढने की घोषणा करने वाला था.

बाबाश्री ताऊआनंद - हे परम भक्त शिरोमणी ललित, वैसे तो आप स्वयम परम ज्ञान को उप्लब्ध हैं, परंतु कभी कभी यह माया अच्छे २ पुरुषों को व्यथित कर डालती है. और आप स्वयम इस प्रश्न का उत्तर अच्छी तरह जानते हैं. तथापि आप हमारे श्रीमुख से इसका उत्तर चाहते हैं तो कल के सत्र मे हम इसका विस्तृत उत्तर दे पायेंगे, क्योंकि प्रश्न अति गूढ गंभीर है और इसे उदाहरण सहित समझाना होगा.

भक्तों अब आप हमारे साथ थोडी देर कीर्तन मे शामिल होकर अपने अपने शयन स्थल तक प्रस्थान करेंगे.

अब आज के लिये इतना ही. आपका शुभ हो...कल्याण हो!

Tuesday, January 12, 2010

बाबा ताऊआनंद प्रवचनमाला भाग -3

प्रिय आत्मन,

आजके सांध्य कालीन सत्र मे आपका स्वागत है. वर्षांत मे सभी बाबा लोग हिमालय पर तपश्चर्या में लीन थे जो कभी भी लौट सकते हैं. तो आईये आज हम आपको एक बहुत ही जरुरी विषय के बारे में बताते हैं.

बाबा ताऊआनंद सांध्यकालीन प्रवचन देते हुये!


अक्सर मनुष्य अपनी भूलों और गल्तियों से ही सबक लेता है. ऐसा इस दुनियां मे कोई भी नही है जो सीखने की इस प्रक्रिया से ना गुजरा हो.

अक्सर आपने लोगों को यह कहते हुये सुना होगा कि अरे, वो तो मेरा मित्र है. चाहे जिसके बारे मे लोग ऐसा सोच लेते हैं और मान लेते हैं कि वो मेरा मित्र है. जबकि उनकी चार दिन की भी पहचान नही होती.

भक्त गणों, हम आपसे स्पष्ट कह देना चाहते हैं कि इस कलयुग मे असली मित्र , पारस पत्थर की तरह दुर्लभ है. आपके जेब मे माल है तब तक आपको मित्रता जताने वाले बहुतायत से मिल जायेंगे. पर सच्चा मित्र मिलना दुर्लभ है. यहां पर आपको ताली मित्र ही मिलेंगे.

यहां और खासकर इस ब्लागिंग की दुनियां मे आपको ऐसे ताली मित्र बहुतायत से मिलेंगे जो सामने पडने पर तो आपकी पीठ ठोकेंगे और बहुत ही शरीफ़ और अभिजात्य नजर आयेंगे. पर यकीन मानिये ये वो ही लोग हैं जो आपकी कब्र भी खोदते हैं. हमारे अनुभव से लाभ लिजिये. हमने प्रत्यक्ष ऐसा देखा है.

हमारा यह मतलब नही है कि आप सबसे दुश्मनी करलें. नही ..बल्कि सभी से प्रेम करिये, प्रेम से बोलिये. अच्छा बर्ताव किजिये , इससे आपको शुकुन ही मिलेगा. पर झटपट ही इसको मित्रता का जामा ना पहनाईये, वर्ना धोखा खायेंगे. यानि आप अपने मन के गुप्त भेद किसी से मत कहिये. क्योंकि अगर आप सक्षम हैं तो आपको बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जो आपके लिये जान देने का भी दिखावा कर सकते हैं. पर यकीन मानिये वो आपके लिये जान तो क्या देंगे? बल्कि आपकी कब्र अवश्य खोद देगे.

भक्त गणॊं , अब समझदार को इशारा काफ़ी होता है.

आज के लिये इतना ही ..आपका शुभ हो ...कल्याण हो, यही कामना है!

Saturday, January 9, 2010

बाबा ताऊआनंद प्रवचनमाला भाग -2

प्रिय आत्मन,
पिछला साल बीत चुका है और नव वर्ष आगया है. आश्रम के सभी बाबा महंत लोग वर्षांत की तपस्या के लिये हिमालय पर्वत पर गये हुये थे. आज नववर्ष के प्रथम प्रवचन मे आपका हार्दिक स्वागत है.

बाबा श्री ताऊआनंद महाराज


इस संसार मे सभी लोग अपने स्वभाव के वशीभूत हैं.  सब अपने को हीरो और दूसरे को जीरो सिद्ध करने पर तुले हैं और उसके लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं.  स्वयम की मान मर्यादा का ही खयाल नही है तो दूसरों के लिये क्या अपेक्षा की जाये?

पानी से अग्नि को शांत किया जा सकता है,  अगर छाता पास में हो तो धूप से बचने की व्यवस्था की जा सकती है,  और डंडा हाथ मे आजाये तो दुष्ट जानवरों से रक्षा हो सकती है,  अंकुश हाथ में हो तो हाथी को भी वश मे किया जा सकता है,   औषधी मिले तो रोग का इलाज किया जा सकता है,  और अगर मंत्र आता हो तो विषेले नागराज के जहर का भी इलाज हो सकता है, शाश्त्र मे इन सबका इलाज है, लेकिन अफ़्सोस है कि मूर्ख और दुष्ट मनुष्य का कोई इलाज नही है.

इसलिये भक्त गणों, अगर अपना कल्याण चाहते हैं तो ऐसे मूर्ख और  दुष्ट व्यक्तियों को पहचाने,  उनसे बचकर रहे और उनसे यथेष्ट  दूरी बना कर रखें.

आज के लिये इतना ही. ईश्वर आप सबका कल्याण करें.