प्रिय आत्मन,
पिछले प्रश्नोतर के सत्र मे हमने परम भक्त ललित शर्मा के प्रश्न का उत्तर देने का वादा किया था. तदनुसार हम आपको वह प्रसंग बताते हैं कि किस तरह अमर्यादित मौज लेने का परिणाम अत्यंत विनाश की प्राप्ति रहा है.
परम भक्त ललित शर्मा ने प्रश्न किया था कि - आजकल मौज के नाम बहुत कुछ चल रहा है. क्या आप इस मौज लेने पर कुछ प्रकाश डालेंगे. हे बाबा शिरोमणी, इस मौज शब्द ने ब्लागजगत मे तहलका मचा रखा है, चारों तरफ़ अशांति छा गई है.
बाबाश्री ताऊआनंद का उत्तर -
भक्त गणों, आज ललित जी ने बहुत ही कल्याण कारी प्रश्न किया है. अत: हम इसको एक उदाहरण के माध्यम से विस्तार से समझाना चाहेंगे. जिससे आप अवश्य लाभ उठायेंगे ऐसी हमारी इच्छा है. पर आप करोगे तो वही जो आपकी इच्छा है.
मर्यादित मौज और अमर्यादित मौज मे जमीन आसामान का फ़र्क है. मर्यादित मौज के किस्से आप गुरुदेव रविंद्र नाथ टेगोर और महात्मा गांधी की चुहुलबाजी मे पायेंगे. ये प्रवचन हमने पहले भी दिये हैं आप उन्हे पढ कर मर्यादित मौज के बारे मे जान सकते हैं कि वो किस प्रकार एक स्वस्थ हास्य को जन्म देती है.
अब अमर्यादित मौज के बारे मे बताते हैं. और अमर्यादित मौज हमेशा ही बचपने मे होती है. पर इसका खामियाजा तो बडे बडे साम्राज्यों ने अपने खात्मे के रुप मे भुगता है. शायद आपने आज तक ध्यान ना दिया हो. पर हम आज आपको बताते हैं कि इस मौज के चक्कर मे किस तरह यदुवंश जैसे महाप्रतापी साम्राज्य का अंत कर दिया? ये वही यदुवंश था जिसको भगवान श्रीकृष्ण ने इतना शक्तिशाली बना दिया था कि जिसकी सहायता के बिना महाभारत का युद्ध भी नही लडा जा सका. खैर वो अलग प्रसंग है जो हम उचित अवसर आपको अवश्य बतायेंगे. अभी तो मौज लेने की बात चल रही है कि किस तरह से मौज लेने से महाविनाश हुये हैं.
तो भक्त गणों, हम उस समय की बात कर रहे हैं जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुये करीब ३६ साल का समय हो चुका था। श्रीकृष्ण द्वारका पर इस समय राज्य कर रहे थे. उनके सुशासन मे सभी यादव राजकुमार असीम सुख पूर्वक भोग विलासों मे जीवन व्यतीत कर रहे थे. निरंतर भोग विलासों से उन राजकुमारों का शील और संयम कम हो चुका था.
भक्त गणों, जैसा कि आप जानते ही हैं कि जब इंसान को भरपेट भोजन और ऐश्वर्य मिलने लगता है तो उसकी मौज लेने की अभिलाषा अति उत्कट हो जाती है. आस पास वैसे ही चमचों और चेलों का जमावडा शुरु होजाता है. चेले चमचों को भी बिना किसी प्रयास के राजकुमारों की संगत मे भोग विलास और मौज लेने के आनंद की आदत पड जाती है. यानि चमचे भी "फ़ोकट का चंदन घिस मेरे नंदन" वाली कहावत चरितार्थ करने लग जाते हैं. यानि ये वो समय होता है जब दो कौडी के चमचे-चेले भी अपने आपको सर्वोपरि समझने लगते हैं. और यहीं से विनाश के बीज बोये जाते हैं.
तो इसी तरह भोग विलास और मौज लेते हुये सभी राजकुमारों और उनके चेले चमचों की जिंदगी बडे ऐशोआराम मे कट रही थी. हालत यहां तक आ पहुंची की उनको उम्र में अपने से छोटे बडे और उनकी पद मर्यादा का ख्याल भी जाता रहा. वो किसी की भी मौज लेने मे उम्र का लिहाज भी नही देखते थे.
भक्तगणों एक रोज कुछ सिद्ध तपस्वी महात्माओं का दल द्वारका आया. और वहां एक जगह ठहर गया. इन्ही यादव राजकुमारों और उनके चमचों को जब खबर लगी तो ये सारे मौज लेने की नीयत से वहां पहुंच गये. और उन महात्माओं की मौज लेने की युक्ति सोचने लगे. उन दुष्ट चेले चमचों ने उम्र और पद का भी लिहाज नही किया.
भक्तगणों फ़िर उन्होनें राजकुमार साम्ब को स्त्री के कपडे पहनाये और उसके पेट पर कपडे बांध कर उसको इन महात्माओं के सामने ले गये और पूछने लगे - हे महात्मा लोगों आप तो त्रिकाल दर्शी हैं. बताईये इस औरत को लडका होगा या लड्की?
महात्माओं को इस तरह अपनी मौज लिये जाना अच्छा नही लगा और वो क्रुद्ध होगये. और उन्होने कहा कि - अरे मंद बुद्धि और मौज मे उन्मत दुष्टों, इसको ना तो लडका होगा और ना ही लडकी होगी. इसको तो मूसल पैदा होगा और वही मूसल तुम्हारे कुल के विनाश का कारण बनेगा.
और इस प्रकार वो महात्मा उनको श्राप देकर चले गये और इन लोगों मे अब पश्चाताप होने लगा कि ये क्या कर बैठे? गलत लोगों की मौज लेली अबकी बार? आज तक तो जिसकी भी मौज ली वो चुपचाप जलील होकर चला जाता था पर अबकी बार दुर्भाग्य से शेर को सवा सेर मिल गया.
आगे की कहानी तो आपको मालूम ही होगी कि किस प्रकार कालांतर मे समय आने से राजकुमार साम्ब को मूसल पैदा हुआ और उसी के कारण ये सब विनाश को प्राप्त हुये.
तो भक्तगणों मौज लेने से बचा जाना चाहिये. पर जिन्होने मौज ले ली है और महात्माओं का श्राप लेलिया है उनकी रक्षा कौन कर सकता है?
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अब आज के लिये इतना ही. आपका शुभ हो...कल्याण हो!